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घत्ता-बिजली की टंकार और चमक दिखाते हुए पावस के द्वारा धनुष ताना गया (और) बादलरूपी हाथीघटा को प्रेरित करके (उसके द्वारा) जलरूपी तीर तुरन्त छोड़े गए।
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[1] जलरूपी तीरों के प्रहारों से चोट पहुँचाया हुआ ग्रीष्म राजा युद्ध में (मारकर) (नीचे) गिरा दिया गया। [2] इसलिए मेंढक सज्जनों की तरह रोने लगे (और) शरारती मोर दुष्टों की तरह नाचे । [३] (ऐसा प्रतीत हो रहा था) मानो रोने के कारण नदियों ने (अपने को) (आँसूरूपी जल से) भरा हो (और) मानो (वर्षा से प्राप्त) आनन्द से कवि प्रसन्न हुए हों। [4] मानो कोयलें ऊँची आवाज में (बोलने के लिए) स्वतन्त्र की गई (हों) और मानो मोर संतोष से बोले हों। [5] मानो बड़े तालाब विपुल आँसूरूपी जल से भरे हुए (हों और) मानो बड़े पर्वत हर्ष से पुलकित (हों)। [6] मानो तप्त दावाग्नि के वियोग से धरती विविध विनोद के कारण नाची (हो)। [7] मानो दुःख के कारण सूर्य अस्त हुआ हो (और) मानो सुख के कारण रात स्वयं व्याप्त हो गई हो। [8] वृक्ष के पत्ते सुहावने हुए (और) पवन से हिले-डुले, मानो (उनके द्वारा) (यह) बोला गया (है) (कि) ग्रीष्म किसके द्वारा मारा गया ।
घत्ता-उस जैसे भयातुर समय में दोनों ही राम और लक्ष्मण सीता- सहित (उस) (बड़े) वृक्ष के नीचे के भाग में योग-ग्रहण करके महामुनि की भाँति बैठ गये ।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ।
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