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28.1
[1] जिस प्रकार युद्ध के क्षेत्र में सेना फैलती है (और) आकाश के क्षेत्र में जलकरणों का समूह फैलता है । [2] जिस प्रकार प्रज्ञान (-रूपी अंधेरी रात) का अन्धकार फैलता है, जिस प्रकार बहुत प्रकार का ज्ञान रखनेवाले की बुद्धि फैलती है (मजबूत होती है)। [3] जिस प्रकार अत्यन्त पापी का पाप फैलता है, जिस प्रकार अत्यन्त धार्मिक का धर्म फैलता है । [4जिस प्रकार मृग को धारण करनेवाले (चन्द्रमा) का प्रकाश फैलता है, जिस प्रकार जिनदेव की महिमा फैलती है। [5] जिस प्रकार धन से रहित (व्यक्ति) की चिन्ता उभरती है, जिस प्रकार अत्यधिक शालीन का यश फैलता है। [6] जिस प्रकार देवों की तुरही का शब्द फैलता है, जिस प्रकार सूर्य की किरणें आकाश में फैलती हैं। [7] जिस प्रकार दावाग्नि (जंगल की आग) जंगल के अन्दर फैलती है, उसी प्रकार बादलों का समूह आकाश में फैला है। [8] बादल (समूह) गरजा (और) बिजली ने तड-तड किया (और) (पृथ्वी पर) पड़ी, (मानो) (वह) जानकी (और) राम की शरण में गई हो ।
घत्ता-(सारा दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था) मानो पावस (वर्षा ऋतु का) राजा (जो) यश का इच्छुक (है), (जिसका) हाथ इन्द्रधनुष को पकड़े हुए (है), (वह) मेघरूपी हाथी पर चढ़कर ग्रीष्म-राजा के ऊपर आक्रमण के लिए तैयार (हो) ।
28.2
[1] जब पावस (वर्षा ऋतु का) राजा गरजा, (तो) ग्रीष्म द्वारा धूल-वेग (प्रांधी) भेजा गया । [2] (वह) (धूल) मेघ-समूह से जाकर चिपक गई, (फिर) बिजलीरूपी तलवार के प्रहारों से (वह) (धूल) छिन्न-भिन्न कर दी गई । [3] (इसके परिणामस्वरूप) जब (धूल) विमुख चली (तो) भयंकर ग्रीष्म ऋतु (पावस राजा को) 'मारो' कहती हुई उठी । [4] (और) खूब जलती हुई ऊंची दौड़ी (तथा) उत्तेजित होती हुई (पावस राजा की मोर) प्रवृत्त हुई । [5] और (उस ओर) कूच करती हुई तेजी से जली, (तब) (ऊष्ण) लपट की शृंखला से चिनगारियों को छोड़ते हुए (आगे चली)। [6] (और) जब ऊष्ण ऋतु धूम की शृंखला के ध्वजदण्डों को ऊंचा करके, तूफानरूपी श्रेष्ठ तलवार को खींचकर, [7] झपट मारते हुए (और) प्रहार करते हुए, श्रेष्ठ वृक्षोंरूपी शत्रु के योद्धा-समूह को नष्ट करते हुए, [8] मेघरूपी महा-हाथियों की टोली को खण्डित करते हुए (पावस राजा से) भिड़ती हुई दिखाई दी।
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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