Book Title: Aparigraha Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 26
________________ परिग्रह की सीमाए । १५ साधारण व्यक्ति आश्वयक पदार्थ भी खरीद नहीं सकते । इससे समाज में, देश में दो वर्ग बन जाते हैं - १. अमीर और २. गरीब। जिसे हम आज की भाषा में पूँजीपति और कम्युनिस्ट भी कह सकते हैं । कम्युनिस्ट कहीं बाहर से नहीं आए हैं और न वे आकाश से टपक पड़े हैं। संग्रह खोर मनोवृत्ति ने ही कम्युनिज्म ( Communism ) को जन्म दिया है । जिसका एकमात्र यही ध्येय है कि समाज एवं देश में से विषमता दूर हो। हवा, पानी और सूर्य के प्रकाश की तरह अशन, वसन और निवसन के साधन सबको समान रूप से सुलभ हों। इसमें किसी भी विचारक के दो मत नहीं है। जैन धर्म भी अनावश्यक संग्रह वृत्ति का विरोध करता है । इसे पाप, अधर्म एवं संघर्ष की जड़ मानता है । भगवान् महावीर का बज्र आघोष रहा है-" जो व्यक्ति अपने सुख-साधनों का अम्बार लगाता जाता है, अपने संग्रह एवं प्राप्त पदार्थों का केवल अपने लिए ही उपयोग करता है, वह उनका - 1 - जिन्हें उनकी आवश्यकता है, समान रूप से बितरण नहीं करता है, तो बह मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता; वह पूर्ण शान्ति को नहीं पा सकता । ' क्योंकि मुक्ति एवं पूर्ण शान्ति भोग में नहीं, त्याग में है । लेने में नहीं, देने में है । संग्रह करने में नहीं, वितरण करने में है । संग्रह के जाल में आबद्ध व्यक्ति कभी भी मुक्ति के द्वार को नहीं खट-खटा सकता । दुनिया के प्रत्येक विचारक ने परिग्रह - संग्रह वृत्ति को पाप कहा है । अंग्रेजी के महान् कवि और नाट्य लेखक (Great Port and Dramatist) शेक्सपियर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है-- " दुनिया में स्थित सब तरह के विषाक्त पदार्थों में मानव की आत्मा के लिए स्वर्ण - धन-संग्रह सबसे भयंकर विष है । 2 और ईसा (Christ ) का यह उपदेश तो विश्व-प्रसिद्ध है कि सूई के छिद्र में से ऊँट का निकलना सरल है, परन्तु पूँजीपति का मुक्ति को प्राप्त करना कठिन हुई नहीं, असम्भव है। इससे स्पष्ट होता है कि संग्रह वृत्ति सब तरह से अहितकर है। वह स्वयं व्यक्ति के लिए भी असंविभागी न हु तस्स मुक्खो । दशवेकालिक सूत्र Gold is worse poison to men's souls than any mortal drug. - Shakespeare ३. It is easier for camel to go through the eye of a needle than for a rich man to enter into the Kingdom of God. - Bible १. २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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