Book Title: Aparigraha Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 179
________________ १६८ | अपरिग्रह-दर्शन समाज भी उन्मुक्त भाव से उसे सुख के साधन प्रस्तुत कर देता है। मेरे विचार में सबसे सुखी समाज वह है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति परस्पर हार्दिक सम्मान की भावना रखता है और एक दूसरे के जीवन का समादर करता है। याद रखिए, समाज के विकास में ही आपका अपना विकास है । और समाज के पतन में आपका अपना पतन है। समाज का विकास करना, यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य हो जाता है। जब तक व्यक्ति में सामाजिक भावना का उदय नहीं होता है, तब तक वह अपने आपको बलवान नहीं बना सकता । एक बिन्दु जल का क्या कोई अस्तित्व रहता है ? किन्तु वही बिन्दू जब सिन्धु में मिल जाता है, तब क्ष द्र से विराट हो जाता है। इसी प्रकार क्ष द्र व्यक्ति समाज में मिलकर विराट बन जाता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व समाजीकरण में ही विकसित होता है। आज के युग में समाजवाद को बड़ी चर्चा है । कुछ लोग समाजवाद के नाम से भयभीत रहते हैं । वे यह सोचते हैं, कि यदि समाजवाद आ गया, तब हमारा विनाश हो जायगा। विनाश का अर्थ है, उनकी सम्पत्ति का उनके हाथों से निकल जाना। क्योंकि समाजवाद में सम्पत्ति और सत्ता व्यक्ति की न रहकर, समाज की हो जाती है। यह सब कुछ होने पर भी कितने आश्चर्य की बात है, कि आज संसार में सर्वत्र कहीं कम तो कहीं अधिक समाजवाद का प्रसार और प्रचार बढ़ रहा है । इस वर्तमान युग में समाजवाद, लोकतन्त्रवाद और साम्यवाद का ही प्रभुत्व होता जा रहा हैं। समाजवाद के विषय में परस्पर विरोधो इतनी विभिन्न धारणाएँ हैं- कि समाजवाद का एक निश्चित स्वरूप बतला सकना सम्भव नहीं है, क्योंकि समाजवादी वर्ग विभिन्न दलों में विभक्त है। कौन समाजवादी है और कौन नहीं - यह कहना कठिन है । मेरे विचार में समाजवाद एक सिद्धान्त है और वह एक राजनैतिक आन्दोलन के रूप में प्रकट हुआ है, किन्तु यथार्थ में वह राजनोति का ही सिद्धान्त नहीं है, बल्कि उसका अपना एक आर्थिक सिद्धान्त भी है। समाजवाद के राजनीतिक और आर्थिक सिद्धान्त इस प्रकार मिले हुए हैं, कि वे एक दूसरे से पृथक् नहीं हो सकते । शोषण-मुक्त समाज : समाजवाद उस टोपी के समान है जिसका आकार समाप्त हो गया है, क्योंकि समो लोग उसे पहनते हैं ।" समाजवाद के सम्बन्ध में भारत के महान चिन्तक आचार्य नरेन्द्र देव ने कहा है - "शोषण-मुक्त समाज की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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