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१६६ अपरिग्रह-दर्शन सख्या में मनुष्य अत्याचार की चक्की में पिस रहे थे । स्त्रियों को भी मनुष्योचित अधिकारों से वंचित कर दिया गया था। एक क्या अनेक रूपों में सब ओर हिंसा का घातक साम्राज्य छाया हुआ था। भगवान महावीर ने उस समय अहिंसा का अमतमय सन्देश दिया, जिससे भारत की काया पलट हो गई। मनुष्य राक्षसी भावों से हटकर मनुष्यता की सीमा में प्रविष्ट हआ । क्या मनुष्य, क्या पश, सभी के प्रति उनके हृदय में प्रेम का सागर उमड़ पड़ा। अहिंसा के सन्देश ने सारे मानवीय सुधारों के महल खड़े कर दिए। दुर्भाग्य से आज वे महल फिर गिर रहे हैं । जल, थल, नभ अभी-अभी खन से रंगे जा चुके हैं, और भविष्य में इससे भी भयंकर रंगने की तैयारियाँ हो रही है। तीसरे महायुद्ध का दुःस्वप्न अभी देखना बन्द नहीं हुआ है। परमाण बम के आविष्कार की सब देशों में होड़ लग रहो है । सब ओर अविश्वास और दुर्भाव चक्कर काट रहे हैं, अस्तु, आवश्यकता है-आज फिर जन-संस्कृति के जैन तीर्थंकरों के भगवान महावीर के, जैनाचार्यों के "अहिंसा परमो धर्मः" की। मानव जाति के स्थायी सुखों के स्वप्नों को एकमात्र अहिंसा हो पूर्ण कर सकती है, और कोई दूसरा विकल्प नहीं
"अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम् ।"
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