Book Title: Aparigraha Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 208
________________ पंचशील और पंचशिक्षा वर्तमान युग में दो प्रयोग चल रहे हैं - एक अणु का, दूसरा सहअस्तित्व का एक भौतिक है, दूसरा आध्यात्मिक । एक मारक है, दूसरा रा तारक । एक मृत्यु है, दूसरा जोवन । एक विष है, दूसरा अमृत । अणु-प्रयोग का नारा है - " मैं विश्व की महान् शक्ति हूँ, संसार का अमित बल है, मेरे सामने झुको या मरो ।" जिसके पास मैं नहीं है, उसे विश्व में जीवित रहने का अधिकार नहीं है । क्योंकि मेरे अभाव में उसका सम्मान सुरक्षित नहीं रह सकता ।" सह-अस्तित्व का नारा है - "आओ, हम सब मिलकर चलें, मिलकर बैठे, और मिलकर जीवित रहें, मिलकर मरें भी । परस्पर विचारों में भेद है, कोई भय नहीं । कार्य करने की पद्धति विभिन्न हैं, कोई खतरा नहीं । क्योंकि तन भले ही भिन्न हों, पर मन हमारा एक है। जीना साथ है, मरना साथ है । क्योंकि हम सब मानव हैं, और मानव एक साथ ही रह सकते हैं, बिखर कर नहीं, बिगड़ कर नहीं ।" पश्चिम अपनी जीवन-यात्रा अणु के बल पर चला रहा है, और पूर्व सह-अस्तित्व की शक्ति से । पश्चिम देह पर शासन करता है और पूर्व देही पर । पश्चिम तलवार-तीर में विश्वास रखता है, पूर्व मानव के अन्तर मन में, मानव की साहजिक स्नेह - शीलता में । आज की राजनीति में विरोध है, विग्रह है, कलह है, असन्तोष है और अशान्ति है । नीति, 'भले ही राजा की हो या प्रजा की, अपने आप में पवित्र है, शुद्ध और निर्मल है। क्योंकि उसका कार्य जग कल्याण है, जब विनाश नहीं । नीति का अर्थ है, जीवन की कसौटी, जीवन की प्रामाणि कता, जीवन की सत्यता । विग्रह और कलह को वहाँ अवकाश नहीं । क्योंकि वहाँ स्वार्थ और वासना का दपन होता है । और धर्म क्या है ? सबके प्रति मंगल-भावना । सबके सुख में सुख-बुद्धि और सबके दुःख में दुःख - बुद्धि । समत्व योग की इस पवित्र भावना है । धर्म और नीति सिक्के के दो बाज हैं। आवश्यकता भी है । यह प्रश्न अलग है, कि का गठबन्धन कहाँ तक संगत रह सकता है । को धर्म नाम से कहा गया दोनों की जीवन विकास में राजनीति में धर्म और नीति विशेषतः आज की राजनीति में जहाँ स्वार्थ ओर वासना का नग्न ताण्डव नृत्य हो रहा हो । मानवता मर रही हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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