Book Title: Aparigraha Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 210
________________ पंचशील और पंचशिक्षा | १६६ रूप में चर्चा हो रही है। 'शील' शब्द का अर्थ, यहाँ पर सिद्धान्त लिया गया है । पंचशील आज की विश्व राजनीति में एक नया मोड़ है जिसका मूल धर्म भावना में है। __ भारत के लिए पंचशील शब्द नया नहीं है । क्योंकि आज से सहस्रों वर्ष पूर्व भी श्रमण-संस्कृति में यह शब्द व्यबहत हो चुका है। जैन परम्परा और बौद्ध परम्परा के साहित्य में पंचशील शब्द आज भी अपना अस्तित्व रखता है, और व्यवहार में भी आता है। बौद्ध पंचशील : ___ भगवान् बुद्ध ने भिक्षुओं के लिए पाँच आचारों का उपदेश दिया था, उन्हें पंचशील कहा गया है । शील का अर्थ, यहां पर आचार है, अनुशासन है। पंचशील इस प्रकार हैं १. अहिंसा-प्राणि मात्र के प्रति समभाव रखो। किसी पर द्वेष मत रखो। क्योंकि सबको जीवन प्रिय है। २. सत्य -- सत्य जीवन का मूल आधार हैं । मिथ्या भाषण कभी मत करो। मिथ्या विचार का परित्याग करो। ३. अस्तेय दूसरे के आधिपत्य की वस्तु को ग्रहण न करो। जो अपना है, उसमें सन्तोष रखो। ___४. ब्रह्मचर्य - मन से पवित्र रहो, तन से पवित्र रहो । विषय-वासना का परित्याग करो। ब्रह्मचर्य का पालन करो। ५. मद त्याग--किसी भी प्रकार का मद मत करो, नशा न करो। सुरापान कभी हितकर नहीं है। उत्तराध्ययन सूत्र के २३वें अध्ययन में केशी-गौतम चर्चा के प्रसंग पर पच-शिक्षा' का उल्लेख मिलता है । पंचशील और पंच शिक्षा में अन्तर नहीं है, दोनों समान हैं, दोनों की एक ही भावना है । शील के समान शिक्षा का अर्थ भी यहाँ आचार है । श्रावक के द्वादश ब्रतों में चार शिक्षा व्रत कहे जाते हैं । पंच शिक्षाएं ये हैं--- जैन पंच शिक्षा : १. अहिंसा- जैसा जीवन तुझे प्रिय है, सबको भी उसी प्रकार । सब अपने जीवन से प्यार करते हैं । अतः किसी से द्वेष-घृणा मत करो। २. सत्य जीवन का मूल केन्द्र है । सत्य साक्षात् भगवान है । सत्य का अनादर आत्मा का अनादर है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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