Book Title: Aparigraha Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 211
________________ २०० / अपरिग्रह दर्शन ३. अस्तेय - अपने श्रम से प्राप्त वस्तु पर ही तेरा अधिकार है। दूसरे की वस्तु के प्रति अपहरण की भावना मत रख । ४. ब्रह्मचर्य-शक्ति संचय । वासना संयम । इसके बिना धर्म स्थिर नहीं होता। संयम का आधार यही है । यह ध्र व धर्म है। ५. अपरिग्रह -- आवश्यकता से अधिक संचय पाप है। संग्रह में परपीड़न होता है । आसक्ति बढ़ती है । अतः परिग्रह का त्याग करो। वैदिक पंच यम : वैदिक धर्म का पंच-यम, जैन पंच-शिक्षा के सर्वथा समान है । भावना में भी और शब्द में भी । पंच-यम का उल्लेख योग-सूत्र में इस प्रकार है"अहिंसासत्यास्तेब्रह्मचर्यापरिग्रहाः यमाः ।" यम का अर्थ है, संयम, सदाचार, अनुशासन । भारत की राजनीति में आज जिस पंचशील की चर्चा की जा रही है, प्रचार हो रहा है, वह भारत के लिए नया नहीं है। भारत हजारों वर्षों से पंचशील का पालन करता चला आ रहा है। राजनीति के पंचशील सिद्धान्त का विकास बौद्ध पंचशील से, जैन पंच-शिक्षा से और वैदिक पंच-यम से भावना में बहुत कुछ मेल खा जाता है। बौद्ध पंचशील और जैन पंच-शिक्षा की मूल आत्मा सह अस्तित्व और सहयोग में है। मानवतावादी समाज का कल्याण और उत्थान अणु से नहीं, सह अस्तित्व से होगा-यह एक ध्र व सत्य है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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