Book Title: Aparigraha Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 205
________________ १९४ | अपरिग्रह-दर्शन रखना, जैन संस्कृति में चोरी है । व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र क्यों लड़ते है ? इसी अनचित संग्रह-वृत्ति के कारण। दूसरों के जीवन की, जीवन के सुख साधनों की उपेक्षा करके मनष्य कभी भी सुख-शान्ति नहीं प्राप्त कर सकता। अहिंसा के बीज अपरिग्रह-वृत्ति में ही ढूढ़े जा सकते है। एक अपेक्षा से कहे, तो अहिंसा और अपरिग्रह वृत्ति, दोनों पर्यायवाची शब्द है । युद्ध और अहिंसा : आत्म-रक्षा के लिए उचित प्रतिकार के साधन जुटाना, जैन-धर्म के विरुद्ध नहीं है। परन्तु आवश्यकता से अधिक संगृहीत एवं संगठित शक्ति, अवश्य ही संहार-लीला का अभिनय करेगी, अहिंसा को मरणोन्मुखी बनाएगी। अतः आप आश्चर्य न करें, कि पिछले कुछ वर्षों से जो निशस्त्रीकरण का आन्दोलन चल रहा है, प्रत्येक राष्ट्र को सीमित युद्ध सामग्री रखने को कहा जा रहा है, वह जैन तीर्थंकरों ने हजारों वर्ष पहले चलाया था। आज जो काम कानून द्वारा, पारस्परिक विधान के द्वारा लिया जाता है, उन दिनों वह उपदेशों द्वारा लिया जाता था। भगवान महावीर ने बड़े बड़े राजाओं को जैन-धर्म में दीक्षित किया था, और उन्हें नियम दिया गया था, कि वे राष्ट्र रक्षा के काम में आने वाले शस्त्रों से अधिक शस्त्र संग्रह न करे, साधनों का आधिक्य मनुष्य को उद्दण्ड बना देता है । प्रभता की लालसा में आकर वह कहीं न कहीं किसी पर चढ़ दौड़ेगा, और मानव संसार में युद्ध की आग भडका देगा। इसी दृष्टि से जैन तीर्थंकर हिंसा के मूल कारणों को उखाड़ने का प्रयत्न करते रहे हैं। जैन तीर्थंकरों ने कभी भी युद्धों का समर्थन नहीं किया। यहां अनेक धर्माचार्य साम्राज्यवादी राजाओं के हाथों की कठपुतली बनकर युद्ध के समर्थन में लगते आए हैं, युद्ध में मरने वालों को स्वर्ग का लालच दिखाते आए हैं, राजा को परमेश्वर का अंश बताकर उसके लिए सब कुछ अर्पण कर देने का प्रचार करते आए हैं, वहाँ जैन तीर्थंकर इस सम्बन्ध में काफी कट्टर रहे हैं। 'प्रश्न व्याकरण" और भगवती-सूत्र" युद्ध के विरोध में क्या कुछ कम कहते हैं ? यदि थोड़ा-सा कष्ट उठाकर देखने का प्रयत्न करेंगे तो बहुत कुछ युद्ध विरोधी विचार सामग्री प्राप्त कर सकेंगे। आप जानते हैं, मगधाधिपति अजातशत्र कूणिक भगवान महावीर का कितना अधिक उत्कृष्ट भक्त था। "औपपातिक सूत्र' में उसकी भक्ति का चित्र चरम सीमा पर पहुंचा दिया है। प्रतिदिन भगवान के कुशल समाचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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