Book Title: Aparigraha Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 178
________________ सर्वोदय और समाज | १६७ विशेषीकरण में बाधा : जिस प्रकार समाजीकरण के साधन होते हैं, उसी प्रकार समाजीकरण में कुछ बाधाएँ भी उपस्थित होती रहती हैं। जब समाजीकरण में किसी भी प्रकार बाधा उपस्थित हो जाती है, तब उस व्यक्ति का समाजीकरण नहीं हो पाता । एक व्यक्ति भले ही कितना भी महत्वाकांक्षी, कितना भी अधिक बुद्धिमान और कितना भी अधिक चतुर क्यों न हो, समय और परिस्थिति से बाध्य होकर जब वह अपना समाजीकरण नहीं कर पाता, तब वह समाज के और उसकी संस्कृति के उदात्त गुणों को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाता है । इस प्रकार का व्यक्ति समाज के किसी भी क्षेत्र में अपना विशेषीकरण नहीं कर पाता । और जब व्यक्ति अपना विशेषीकरण नहीं कर पाता। जीवन की सफलता और समद्धि के लिए यह परमावश्यक है, कि व्यक्ति का जीवन के किसी भी क्षेत्र में विशेषीकरण होना चाहिए। विशेषीकरण एक ऐसी शक्ति है, जिससे ब्यक्ति का व्यक्तित्व शानदार और चमकदार बन जाता है। विशेषीकरण तो होना चाहिए, परन्तु अहंकार नहीं होना चाहिए । व्यक्ति के व्यतित्व के समाजी करण में अहंकार सबसे बड़ी बाधा है। अहंकारी व्यक्ति समाज से दर भागता जाता है, अतः उसके जीवन का समाजीकरण नहीं होने पाता । और, जब तक व्यक्ति के जीवन का समाजोकरण न होगा। तब तक उसके जीवन का सम्पूर्ण विकास सम्भव नहीं है। व्यक्ति परिवार में रहे, समाज में रहे अथवा राष्ट्र में रहे उसे यह सोचना चाहिए, कि मेरा जोबन मेरे अपने लिए नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए है। जिस प्रकार दध के भरे हुए कटोरे में शक्कर घुल-मिल जाती है, वह दुग्ध के कण-कण में परिभ्याप्त हो जाती है और जिस प्रकार एक बिन्दु सिन्धु में मिलकर अपनी अलग सत्ता नहीं रखता -- उसी प्रकार व्यक्ति का व्यक्तित्व जब समाज में मिलकर अपनी अलग सत्ता नहीं रखता, तभी वह इस तत्व को समझ सकता है, कि समाज का लाभ मेरा अपना लाभ है, समाज का सुख मेरा अपना सुख है और समाज का विकास मेरा अपना विकास है। स्पेन्सर का विचार : स्पेन्सर का कथन है, कि समाज सदस्यों के लाभ के लिए होता है, न कि सदस्य समाज के लाभ के लिए । इसका अर्थ केवल इतना ही है, कि जब व्यक्ति समाज के हाथों में अपने आपको समर्पित करता है, तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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