Book Title: Aparigraha Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 177
________________ १६६ / अपरिग्रह दर्शन यदि प्रत्येक व्यक्ति के लिए साध्य मान लिया जाए, तो यह जानना भी परमावश्यक है, कि उसके साधन क्या हैं ? सामान्य रूप से यह कहा जा सकता है, कि मुख्य रूप में व्यक्ति की सामाजिक भावना ही समाजीकरण का प्रधान साधन है। एक विद्वान का कथन है कि “सम्पूर्ण समाज ही समाजीकरण का साधन है और प्रत्येक व्यक्ति जिसके सम्पर्क में कोई आता है, किसी न किसी रूप में समाजीकरण का साधन अथवा प्रतिनिधि है।" विशाल समाज और व्यक्ति के बीच में अनेक छोट-छोटे समूह होते हैं और वे व्यक्ति के समाजीकरण के मुख्य साधन हैं। उदाहरण के लिए एक नवजात शिशु के समाजीकरण की प्रक्रिया उसके अपने घर से ही प्रारम्भ होतो है । परन्तु जैसे-जैसे वह विकसित होता जाता है, और जैसेजैसे उसके जीवन के साथ अन्य समूहों का सम्बन्ध होता जाता है, वैसे-वैसे वह तीव्र गति से समाजीकरण करता जाता है। शिशु का सर्वप्रथम परिचय उसका अपनी माता से होता है, फिर पिता से, फिर भाई-बहिनों से तथा बाद में परिजन और पौरजनों से । वही व्यक्ति आगे चलकर नगर से, प्रान्त से और एक दिन अपने सम्पूर्ण देश से समाजीकरण कर लेता है। अब किसी अन्य देश की सेना हमारे देश पर आक्रमण करती है, और हमारे देश की व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने पर उतर आती है। तब देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान जागृत हो जाता है और वह अपनी पूर्ण शक्ति से अपने अन्य देशवासियों के साथ मिलकर उस आक्रान्ता का विरोध करता है, और उसे पराजित करने के लिए, अपना सर्वस्व देश के लिए निछावर कर डालता है। व्यक्ति के समाजीकरण का यह एक सर्वोच्च रूप है। भले ही हमारे देश में अनेक जातियों, अनेक वर्ग और अनेक सम्प्रदाय रहते हों । किन्तु विशाल समाजोकरण के द्वारा उस अनेकता में हम एकता स्थापित कर लेते हैं, क्योंकि देश की रक्षा और व्यवस्था में हम सबका समान हित है। कभी-कभी यह भी देखने में आता है, एक देश के दो वर्ग वर्षों से लड़ते चले आते हैं परन्तु जब देश पर संकट आता है, तब सब अपना विरोध भूलकर एक हो जाते हैं । यह सब क्यों होता हैं ? समाजीकरण के कारण हो । समाजोकरण की प्रक्रिया व्यक्ति के जीवन में जैसे-जैसे विकास पाती जाती है, वैसे-वैसे उसका जीवन वैयक्तिक से सामाजिक बनता जाता है। मेरे कहने का अभिप्राय इतना ही है, कि समाजोकरण का मुख्य व्यक्ति के अन्दर रहने वाली सामाजिक भावना एवं समान हित की भावना ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212