Book Title: Aparigraha Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 192
________________ इच्छाओं का वर्गीकरण | १८१ हाँ, तो उस गरीब व्यक्ति ने सेठ और उसके भाई के आगे काँसे की टूटी-फूटी थाली में मोटी-मोटी रोटियाँ और आम का अचार रख दिया, साग पकाने की बटलोई में पोने के लिए जल रख दिया। सेठ बड़े आनन्द और प्रेम से खाना खाने लगा, किन्तु उसका छोटा भाई तो थाली, रोटी और बटलोई को ही देखता रहा । इस घटना पर विचारणीय प्रश्न यह पैदा होता है, कि यदि पेट के लिए ही भोजन करना है, तो भोजन तो दोनों के सामने एक जैसा है। एक बड़े प्रेम और रुचि के साथ भोजन करके अपनी क्षुधा तृप्त कर रहा है, दूसरा बार-बार उसको देखकर कुढ़ता है, खजता है, और आखिर बिना खाए ही उठ जाता है । अब प्रश्न यह होता है, कि यदि भूख की शान्ति और पेट की तृप्ति के लिए ही भोजन है, तो फिर क्यों नहीं खाया गया ? इसका अर्थ यह है, कि वह भूख के लिए नहीं खा रहा था । जहाँ सेठ ने भोजन करके आनन्द अनुभव किया, वहाँ उसका भाई दो-चार टुकड़े ही नहर की कड़वी गोली की भाँति निकल सका । अब जरा विचार करके देखें, कि एक हो परिस्थिति में दो व्यक्तियों की मनःस्थिति भिन्न प्रकार को और एक-दूसरे से विपरीत क्यों है ? इसका कारण यह है कि एक ने मन का समाधान कर लिया । वह एक ओर सुन्दर मेज, कुर्सी पर सोने-चांदी के चमकते थालों में मनचाहा मिष्टान्न खा सकता था, तो दूसरी ओर टूटी-फूटी काँसे की थाली में बिना चुपड़ी मोटी-रोटियाँ भी उसी प्रसन्नता के भाव से खा सकता था । वह जीवन की हर परिस्थिति और उलझन में समभाव से रह सकता था । वह भोजन मन के अहंकार के लिए नहीं, बल्कि क्ष ुधा की पूर्ति के लिए करता था । उसने जीवन की गति को नया मोड़ दिया था, इच्छा और कामनाओं का विश्लेषण करके उनका ठीक वर्गीकरण किया था । उसने चिन्तन के बल पर आवश्यक और उपयोगी इच्छाओं से भिन्न अन्य तरंगित इच्छाओं पर काबू पा लिया था । इच्छा और आवश्यकता : इस प्रकार जीवन में इच्छा और आवश्यकता का भेद समझना होगा । इच्छाएं, हमारे मन में रात-दिन जन्म लेतो हैं, और कुछ देर हुड़दंग मचाकर खत्म भी हो जाती हैं, उनमें से कुछ ऐसो बच जाती हैं, जो हमें परेशान किए रहती हैं । जब तक वे पूरी नहीं होतीं, चैन नहीं पड़ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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