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साधक-जीवन : समस्याएं और समाधान | ११५
नहीं माना है। इसका अभिप्राय यह है कि दबाई हुई वृत्तियां कुछ क्षण बाद उछल कर पुनः उद्दीप्त हो जाती हैं, और फिर उसो पहले को औदयिक स्थिति में लोट कर चली जाती हैं।
__आगमों में बताया गया है, कि साधक जब उपशम के मार्ग पर चल पड़ता है, तो वह वत्तियों को दबाने के प्रयत्न में लग जाता है। मनोविज्ञान की भाषा में कहें, तो जो वृत्तियां जागृत या चेतन मन में उबुद्ध होती हैं, उन्हें अवचेतन मन में डाल देता है। अवचेतन मन में स्थित वृत्तियां संस्कार बन कर छिप जाती हैं, जब कभी उन्हें उबुद्ध होने का अवसर एवं निमित्त मिलता है, तो वे पुनः भड़क उठती हैं और, साधक के मन में विक्षेप, विघ्न उपस्थित कर देती हैं।
___कल्पना कीजिए -घर में चुपके से कोई चोर घुस आया हो, किसी अंधेरे कोने में सांस रोके दुबक कर बैठ गया हो और आपको पता न चले तो वहां आपके धन-माल की सुरक्षा कैसे रह सकती है ? आपको थोड़ा-सा असावधान देखा कि वह छुपा हुआ चोर अपना काम कर लेता है। जो घर में छपा बैठा है, और दांव लगाने की ताक में है, उससे कितनी देर सुरक्षित रहा जा सकता है ? उपशम भाव में वत्तियों के बोर अन्दर में हो निष्क्रिय होकर छिपे रहते हैं, परन्तु कितनी देर ? अन्तमुहूर्त के बाद वे पुनः सक्रिय हो जाते हैं। उपशम बनाम मूच्छित साँप :
किसी पहाड़ो प्रदेश में एक गांव था। वहाँ एक बालक पहाड़ पर घूम रहा था। रात को बर्क पड़ो था, एक सांप रेंगता हुआ बर्फ पर आ गया, तो मारे ठंड के मूच्छिा हो गया। वहीं सिकुड़ कर ऐसा पड़ रहा कि जैसे मरा हुआ हो। वह बालक चूमता हुमा उधर आया और बर्फ पर सोप को पड़ा हुआ देखा तो उसने सोचा-यह अच्छा तमाशा बनेगा, घर पर छोटे भाई-बहनों को डराने का मजा आएगा। उसने सांप को उठाया और जेब में डाल लिया । वह सांप को मरा हुआ समझ रहा था, इसलिए उसे कोई भय नहीं था। जंगल में घम कर कुछ देर बाद घर पर आया, हाथ पैर ठिठर रहे थे, इसलिए, आग के पास बैठकर तापने लगा । आग की गर्मी जेब तक पहुँची, धीरे-धीरे सांप में -जो ठंड से निश्चेष्ट हो गया था, चेतनता आई। उसने करवट ली और बालक को डस लिया। बालक वहीं समाप्त हो गया ।
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