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व्यक्ति से समाज और समाज से व्यक्ति । १६१
इस विषय को सोचने और समझने का प्रयत्न करना चाहिए । अनेकान्तवादी दष्टिकोण ही सही दिशा का निर्देश कर सकता है। अनेकान्तवादी दृष्टिकोण से यदि हम समाज और व्यक्ति के सम्बन्धों पर विचार करेंगे, तो हमें एक नया ही प्रकाश मिलेगा। अनेकान्तवादी दृष्टिकोण में समष्टि और व्यष्टि परस्पर एक दूसरे से सम्बद्ध है । समष्टि क्या है ? अनेकता में एकता। और व्यष्टि क्या है ? एकता में अनेकता। एक को अनेक बनना होगा और अनेक को एक बनना होगा। इस प्रकार की समतामयी और अनेकान्तमयी दृष्टि से ही हमारे समाज और हमारे राष्ट्र का कल्याण हो सकेगा। जैन भवन, मोती कटरा आगरा जन १९६८
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