________________
११४ । अपरिग्रह-दर्शन के इस ज्वलन्त प्रश्न पर विचार कर रहे हैं कि इस प्रवाह को कैसे रोका जाए ?
मनुष्य जब साधना के क्षेत्र में बढता है, तब अपने मन के भीतर एक युद्ध प्रारम्भ करता है। उसके अन्तर्मन में एक हलचल शुरू होती है, एक स्पन्दन पैदा होता है । और तब साधना के दो रूप हो जाते हैं। कुछ साधक वृत्तियों को दबाते चले जाते हैं, और कुछ साधक वृत्तियों को क्रमशः क्षीण कर उन्हें समाप्त कर देते हैं। वृत्तियों को दबाने का जो क्रम है, वह हमारी शास्त्रीय भाषा में उपशम कहलाता है और समाप्त करने का क्रम क्षय।
हम सोचते हैं, क्रोध करेंगे, तो इसका परिणाम क्या होगा? समाज व परिवार में लोग बुरा कहेंगे, घर में अशान्ति हो जाएगी, शरीर और बुद्धि पर भी इसका बुरा असर होगा। अधिक क्रोध करने से स्मरण-शक्ति दुर्बल हो जाती है, शरीर कमजोर हो जाता है-इस प्रकार का एक भाव हमारे हृदय में जागृत होता है। मैं मानता है, यह जागृति हमारे अन्तः करण के विवेक की नहीं है। यह बाहरी दबाव, प्रभाव और मोह से पैदा हुई है। हम क्रोध को दबाना चाहते हैं, छपाना चाहते हैं कि कोई हमें क्रोधी न कहे, हमारे शरीर पर उसका गलत प्रभाव न पड़े। किन्तु भीतर में क्रोध की उष्णता.. राख में दबी हुई आग की भांति विद्यमान रहती है। राजनीति जीवन का अंग :
__ आपको याद होगा- मैंने अभी एक प्रवचन में कहा था-यदि व्यक्ति के असली रूप को देखना हो, तो बाहर में नहीं, घर में देखिए । वह क्या है, कैसा है- इसका परीक्षण और निर्णय घर की परिस्थिति में ही आप कर सकते हैं । बाहर में व्यक्ति पर बहुत से आवरण रहते हैं, सभ्यता और शिष्टता का दबाव रहता है, इज्जत का भय रहता है। अतः व्यक्ति का असली रूप बाहर में नहीं, घर में ही देखा जा सकता है। क्योंकि घर में मनुष्य दबाव से मुक्त होता है, इसलिए वहां अन्दर की वृत्तियां खुलकर खेलती हैं। व्यक्ति के जीवन में एक राजनीति चल रही है, वह हर क्षेत्र में विभिन्न रूप, विभिन्न आकृतियों से व्यक्त होता है, अपने असलो रूप को प्रकट ही नहीं होने देता। यह विचित्र राजनीति, जो कभी राज्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org