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अपरिग्रह और दान | ६७ उन पर छोड़ दिए गए । कुत्ते भौंकते हुए ज्यों ही कुमारों के पास आए कि उनमें से एक राजकुमार तो भयभीत हो गया। उसने सोचा-आज यह शिकारी कुत्ता मेरा ही शिकार करेगा! क्या इसीलिए हमें बुलाया गया है। वह राजकुमार वह सोच कर और अपने प्राण बचा कर भागा, और उसके भोजन को कुत्ता खा गया। दूसरा राजकुमार हिम्मत वाला, और बहादुर था । वह भागा नहीं। उसने इधर-उधर देखा, तो उसे एक डंडा मिल गया। कुत्ता ज्योंहि उसके पास आया, उसने लपक कर कुत्ते के सिर में डंडा जमाया। कुत्ता पीछे हट गया। राजकुमार खाने लगा। मगर कुत्ता फिर हमला करता है, और राजकुमार फिर उसे डंडा मार कर भगा देता है । इस प्रकार राजकुमार और कुत्त का द्वन्द्व चाल रहा, और राज-. कुमार भोजन करता रहा।
तीसरे राजकुमार की ओर भी जैसे ही तीसरा कुत्ता आया, तो वह न तो भयभीत होकर भागा ही, और न क्रुद्ध होकर उसने डंडा ही संभाला, किन्तु अपने थाल में से जिसमें आवश्यकता से अधिक भोजन भरा था, कुछ टुकड़े कुत्ते को डाल दिए। इस तरह कुत्ता भी खाने लगा, और राजकुमार भी आनन्द से खाने लगा । इस प्रकार जब-जब कुत्ता भौंका, तब-तब वह टुकड़ा डालता रहा । आखिर, उसने भी आनन्द से भोजन किया, और कुत्ते को भी सन्तोष हो गया। थोड़ी देर बाद कुत्ते की हमला करने की वृत्ति हट गई । उसमें सहृदयता के भाव आ गए और वह दुम हिलाने लगा। दूसरे लड़के ने कुत्ते से लड़ते-लड़ते ही जैसे-तैसे अपना भोजन समाप्त किया।
__कहानी समाप्त हो गई, और राजकमारों की परीक्षा भी समाप्त हो गई। इसके बाद राजा ने मन्त्री से परामर्श किया-किसे उत्तराधिकारी बनाना चाहिए ? दोनों ने सोचा -जो मैदान छोड़कर भाग गया, उसे तो उत्तराधिकारी बनाने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता । जीवन में संघर्ष भी होते हैं, प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी आती हैं । हमें ऐसा उत्तराधिकारी नहीं चाहिए, जो ऐन मौके पर मैवान छोड़ कर भाग जाए, जो जीवन की कठिनाइयों का मुकाबिला न कर सके ! ऐसा कायर पुरुष देश का और जनता का कल्याण नहीं कर सकता। ऐसे पुत्र को उत्तराधिकारी बनाना साम्राज्य के टुकड़े-टुकड़े कर देना है।
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