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८ | अपरिग्रह-दर्शन
भरी पड़ी है। दोनों को पता नहीं था, कि यह जहर है, और वे उसे संभाले रखें रहे । जब उन्होंने समझा, कि जिसे हम अमृत समझ कर सहेज रहे हैं, वह वास्तव में अमृत नहीं, विष है, तब क्या वे उसे त्याग करने में देर करेंगे ? पड़िया वाला पुड़िया को फेंक देगा, और बोरी वाला बोरी को त्याग देगा | अब लोग कहें, कि बोरी वाले ने बड़ा भारी त्याग किया है, तो वह त्याग काहे का? पुड़िया जहर की थी, तो बोरी भी जहर की ही थी । उसे छोड़ा तो क्या बड़ी चीज छोड़ी ? तो मैंने जो त्यागा है. जहर ही तो त्यागा है, और अमर्त्य बनने के लिए त्यागा है । तब मैंने कौन-सा बड़ा त्याग किया |
हम इस पर विचार करते हैं, तो सचाई तैरती हुई मालूम होतो है | वह सचाई उस जनता के लिए निकल कर आती है, जो कहती है, कि अमुक का त्याग महान् है, आदर्श है, अमुक ने हजारों और लाखों का त्याग किया है !
लोग तत्त्व पर विचार नहीं करते, और संख्या तथा परिमाण का ही हिसाब लगाया करते हैं। एक आदमी ने दुनिया भर को सम्पदा इकट्ठी कर रखी है, और उसमें से हजार, दो हजार का दान दे देता है, तो धूम मच जाती है - हलचल पैदा हो जाती है । एक साधारण गरीब आदमी अपनी हैसियत से ज्यादा एक रुपया दान कर देता है, तो उसके लिए कोई आवाज ही नहीं उठती । यह तत्व को न समझने का परिणाम है ।
यहां विचार करने की आवश्यकता है। एक चींटी ने अपने रक्त की एक बूँद दे दी, तो उसके लिए वही बहुत है । और एक हाथी सेर दो सेर खून दे दे तो उसका क्या है ? मैं समझता है, कि चींटी के रक्त की एक बूँद का जितना महत्व है, हाथी के सेर दो सेर रक्त-दान का उतना महत्व नहीं है।
इसी दृष्टिकोण से - तात्विक दृष्टि से हमें विचार करना चाहिए, और संख्याओं के फेर में नहीं पड़ना चाहिए । संख्याएं झूठी हैं, और तत्व सत्य है, हमें सत्य को ही अपनाने की आदत डालनी है । बिना तत्व को समझे, जीवन का समाधान नहीं ।
एक बार बुद्ध वैशाली में पहुँचे, तो लोग हीरों और मोतियों के बड़े बड़े थाल भर कर भेंट करने के लिए लाए, और समझे, कि हमने बड़ा भारी त्याग किया है । उस युग की परम्परा थी, कि भेंट पर हाथ रख दिया
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