________________
परिग्रह क्या है ? | ७१
अलवत्ता, यह सही है, कि गृहस्थ दुनियादारी के बन्धनों को लेकर चलता है, मर्यादा बांधकर चलता है, इसलिए उसके कदम तेज नहीं पड़ पाते। साधु के ऊपर समाज और देश का व्यवाहारिक उत्तरदायित्व नहीं होता, दूसरों की कोई बड़ी जवाबदारी नहीं होती, केवल अपने जीवन का उत्तरदायित्व होता है। इस रूप में वह हल्का होता है-लघुभूत-बिहारी होता है, इस कारण साधु के कदमों की गति भी तेज होती है। इस प्रकार एक की गति मंद और दूसरे की तीव्र होती है, परन्तु दोनों के मार्ग में कुछ भी अन्तर नहीं है।
__अगर दोनों के मार्ग में अन्तर मान लिया, तो बड़ी गड़बड़ होगी। साधु की साधना का लक्ष्य मोक्ष है, और मोक्ष मार्ग में ही वह गति करता है। तो, गृहस्थ का मार्ग, साधु के मार्ग से यदि भिन्न है, तो वह मोक्ष मार्ग से भिन्न और परम उपयोगी मार्ग फिर कौन-सा है ? मार्ग तो दो हो हैंमोक्ष मार्ग और संसार मार्ग । गृहस्थ का मार्ग यदि मोक्ष मार्ग नहीं है, तो क्या संसार मार्ग है ? आखिर, श्रावकधर्म की साधना का फल क्या है ? क्या श्रावक-धर्म संसार अर्थात् जन्म-मरण की वृद्धि करने वाला है ? क्या वह मोक्ष का अधिकारी नहीं है ।
___संसार का मार्ग आस्रव का मार्ग है, और मोक्ष का मार्ग संवर का मार्ग है। श्रावक की अहिंसा और सत्य आदि की साधना को संवर में गिना जाए या आस्रव में ? यदि उसे संवर में गिनें तो वह संवर मोक्ष का मार्ग है, तो इसका अर्थ यही हुआ, कि गृहस्थ का अहिंसा, सत्य आदि का मार्ग भी मोक्ष मार्ग ही है, और इस रूप में दोनों का मागं अलग-अलग नहीं है। साधु का जीवन सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र के मार्ग पर चलता है, और श्रावक का जीवन भी इसी मार्ग पर चलता है। दोनों का स्तर अलग-अलग होने पर भी दोनों का मार्ग अलग-अलग नहीं है। दोनों का लक्ष्य भी एक ही है, और गन्तव्य पथ भी एक ही है।
आचार्य से प्रश्न पूछा गया, कि मोक्ष का मार्ग क्या है ? तो, उन्होंने उत्तर दिया
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्ष-मार्गः । अर्थात-सम्यग्दर्शन-सत्य का दर्शन, सत्य का प्रामाणिक ज्ञान और सम्यक्चारित्र का पालन, यही सब मिलकर मोक्ष का मार्ग है । तीनों मिलकर ही मोक्ष-मार्ग हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org