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तृष्णा की आग | ३५
मनुष्य के अन्तरतम में गहरा अन्धकार भर दिया। मनुष्य बाहरी प्रकाश की चमक में ही भूल गया और उसने अन्दर के तम को दूर करने के प्रयत्न को ही छोड़ दिया। बिना साधना के प्रकाश कैसे आएगा?
___ महापुरुषों की दिव्य वाणी का जो अलौकिक प्रकाश उसे मिला, वह उसे अमल में न लाकर उसे तो उसने सुनने तक ही सीमित रखा। जीवन में सीमा का होना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य भी है।
बड़े-बड़े सम्राटों और राजाओं ने भी शान्ति स्थापित करने का प्रयत्न किया, किन्तु वे सफल न हो सके । शान्ति स्थापित करने के लिए ही हवाई जहाज बने, राकेट बने और एटमबम भी, मगर यह सब भी दुनियां में शान्ति की स्थापना न कर सके।
जब यूरोप में बारूद का आविष्कार हआ, तो लोगों ने समझा कि अब युद्ध नहीं होगा। जब टैंकों और वायुयानों का आविष्कार हुआ, तब भी यही आशा प्रकट की गई। उसके बाद प्रत्येक संहारक आविष्कार के साथ यही सम्भावना पैदा हुई और संसार के राजनीतिज्ञों ने यही आश्वासन दिया। मगर लोगों ने देखा कि युद्ध बंद तो हआ नहीं,उसने और भी प्रचण्ड रूप धारण कर लिया। पहले जो यद्ध होते थे, सैनिकों तक ही सीमित रहते थे। पर आज सैनिक और असैनिक का भी भेद नहीं रह गया। पहले के अस्त्र-शस्त्रों में सीमित संहारक शक्ति थी, आज वह असीम होती जा रही है। एक छोटा-सा बम गिरा और अनेकों के प्राण चले गये । फिर भी युद्ध का अन्त कहीं नजर आ रहा है। संसार का संहार करने के नये-नये प्रयत्न किये जा रहे हैं। कहीं-कहीं युद्ध भी चल रहे हैं, और विश्व युद्ध की काली घटाएँ मंडरा रही हैं। एक युद्ध समाप्त भी नहीं हो पाता और दूसरे की तैयारियां होने लगती हैं। हिंसा, प्रतिहिंसा को जन्म देती है।
हालत यह है, कि मनष्य बारूद के ढेर पर बैठा है और पलीला पास में रख छोड़ा है । कहता है-मैं बारूद में पलीता लगा दूंगा, तो शान्ति हो जायगी। किन्तु क्या यह शान्ति प्राप्त करने का तरीका है ? पर दुनिया की आज यही स्थिति बन गई है।
खन भरा कपड़ा खुन से साफ नहीं हो सकता। यह नयी बात नहीं है, हजारों वर्ष पहले कही हुई बात है। कपड़े को धोने के लिए पानी भावश्यक है, खून आवश्यक नहीं । परन्तु मनुष्य सुनता नहीं है, और अभी तक रक्त के कपड़े को रक्त से ही धोने का प्रयत्न कर रहा है। इसलिए शक्ति
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