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२६ | अपारग्रह-दशन
किन्तु इच्छाओं ने कोणिक को घेरना शुरू किया और चाहा कि जल्दी से जल्दी हमारे लिए सिंहासन खाली होना चाहिए । पिता न दीक्षा लेते हैं और न मरते ही हैं। तीर्थंकर भगवान की वाणी सुनते-सुनते बाल पक गये हैं, मगर सिंहासन नहीं त्याग रहे हैं। नहीं त्याग रहे हैं तो त्याग करा देना चाहिए और नहीं मर रहे हैं तो मार देना चाहिए । इसके अतिरिक्त और उपाय ही क्या है ? हिंसा का जन्म परिग्रह से होता है ।
बस, कोणिक निरंकुश इच्छाओं का शिकार होता है और षड्यन्त्र रचकर पिता को कैदखाने में डाल देता है।
__ मगध का विख्यात सम्राट णिक अब कैदी के रूप में अपनी जिन्दगी के दिन गिन रहा है। एक दिन वह उस दशा में था, कि जब भगवान महावीर के समवसरण में धर्मोपदेश सुनने जाता था तो सड़कों पर हीरे और मोती लुटाता जाता था। आज, जीवन की अन्तिम घड़ियों में वही प्रभावशाली सम्राट कैदी बना हुआ, पिंजरे में बन्द है ।
तो पुत्र ने पिता को कैद करके कारागार में डाल दिया और आप सम्राट बन बैठा। पर उसका परिणाम क्या निकला ? क्या कोणिक की इच्छाएं तृप्त हो गयीं? उसे सन्तोष मिल गया नहीं ? निरंकुश इच्छाएँ कभी तृप्त नहीं होती । संसार का वैभव तृष्णा की आग के लिए घी का काम देता है। वह उस आग को बुझाता नहीं, बढ़ाता है। इसीलिए तो शास्त्रकार कहते हैं
जहा लाहो तहा लोहो, नाहा लोहो विवड्ढइ ।
-उत्तराध्ययन सूत्र ज्यों-ज्यों धन-सम्पत्ति और वैभव की प्राप्ति होती जाती है, त्यों-त्यों मनुष्य का लोभ भी बढ़ता ही चला जाता है । लाभ से लोभ का उपशमन नहीं होता, वर्द्धन ही होता है । ऐसा क्यों होता है ? शास्त्र में इस प्रश्न का भी उत्तर दे दिया गया है
इच्छा हु आगासममा अणंतिया। ___ जैसे आकाश का कहीं ओर-छोर नहीं है, कहीं समाप्ति नहीं है, वह सभी ओर से अनन्त है, उसी प्रकार इच्छाएं भी अनन्त हैं । सहस्राधिपति, लक्षपति बनने की सोचता है, लक्षपति कोट्यधीश बनने के मन्सूबे करता है, और कोट्यीधीश अरबपति बनने के सपने देखता है। राजा,महाराजा बनना
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