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आवश्यकताएं और इच्छाएं | २६ सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला हवन्ति,
दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला हवन्ति । अच्छे कर्मों का अच्छा फल मिलता है और बुरे कर्मों का बुरा फल मिलता है।
गेहूँ बोने वाले को गेहूँ की ही फसल मिलेगी, यह नहीं कि जब वह फसल काटने जायगा तो उसे गेहूँ के बदले जूवार की फसल खड़ी मिले । और जो कीकर बो रहा है उसे आम कहां से मिल जाएँगे? यह तो निसर्ग का अटल नियम है । इसमें कभी विपर्यास नहीं हुआ, कभी उलट फेर नहीं हो सकता है । अनन्त-अनन्त काल बीत जाने पर भी यह नियम ज्यों का त्यों रहने वाला है।
___ यह जीवन राक्षस-जीवन है या दिव्य-जीवन है, इस प्रश्न का निर्णय यहीं होना चाहिए और स्पष्ट निर्णय हो जाना चाहिए। जो इस अटल और ध्र व सत्य को भली-भांति पहचान लेगा, वह निर्णय भी कर लेगा।
तो, जीवन का अर्थ क्या है ? जो यहाँ देवता बना है, उसको यहीं मालूम होना चाहिए कि वह आगे भी देवता बनेगा, और जिसने दूसरों के
आंसू बहाये हैं, दूसरों की जिन्दगी में आग पैदा की है, दूसरों का हाहाकार देखा है और देख कर मुस्कराया है, वह आदमी नहीं राक्षस है और उसके लिए देवता बनने की बात हजारों कोस दूर है। उसके लिए तो वही बात होगी कि उस पर दुनिया हंसेगी और वह रोएगा।
स्वर्ग की कामना करे और नरक के योग्य काम करे, तो स्वर्ग कैसे मिल जायेगा? इसके विपरीत, मनुष्य संसार में कहीं भी हो, यदि उसके विचार पवित्र हैं और उसने दुनियां के कांटों को चुना है हटाया है, मार्ग को साफ किया है, किसी भी रोते हुए को देखकर उसके हृदय से प्रेम की धारा बही है, तो फिर स्वर्ग उसे मिलेगा ही। ऐसे व्यक्ति को स्वर्ग नहीं मिलेगा तो किसे मिलेगा?
तो, अपने जीवन को देखो और अपने ही मन से बात करो, तो पता चल जाएगा कि तुम्हारा अगला जीवन क्या बनने वाला है ? हमें कई लोग मिलते हैं और पूछते हैं कि अगले जन्म में हम क्या बनेंगे ? मैं उन्हें उत्तर देता है तीन जन्मों को जानने के लिए तो किसी सर्वज्ञ की आवश्यकता नहीं है । और जब ऐसी बात कहता है तो लोग कहते हैं-सीमंधर स्वामी से पूछने से पता चल सकता है ? किन्तु मैं कहता है-सीमंधर स्वामी के भी पास जाने की क्या जरूरत है ? वह जो कहेंगे, कर्मों के अनुसार ही कहेंगे।
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