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आसक्ति : पाप है | १३
अनेक व्यक्ति मर रहे हों। अपरिग्रही व्यक्ति के लिये इसका विवेक रखना अनिवार्य है। वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा कि जिससे परिवार, समाज एवं देश में असमानता, विषमता का विष फैले ।
विषमता एवं संघर्ष की जड़-इच्छा है । इच्छाओं पर नियन्त्रण न होने के कारण ही मनुष्य आवश्यकता से अधिक संग्रह करता है। वह अपने स्वार्थ के सिवाय और कुछ भी नहीं देख सकता। इसी कारण परिवार, समाज एवं देश में असमानता एवं विषमता की विष बेल पल्लवित-पुष्पित होने लगती है। मानव मन में ईर्षा, द्वेष एवं संघर्ष के भाव उबुद्ध होते हैं और ये विचार ही युद्ध का उग्र रूप धारण करते हैं। इसके उन्मूलन का एक ही उपाय है-इच्छा एवं अनावश्यक संग्रह की भावना का परित्याग कर देना।
अपरिग्रह, विश्व-शान्ति का मूल है। वस्तुतः अपरिग्रह साधना का प्राण है, जीवन है, और परिग्रह मृत्यु । अपरिग्रह अनासक्ति अमृत है और आसक्ति विष । अनासक्त भावना स्वस्थता है और आसक्त-भाव रोग । अनासक्ति धर्म है और आसक्ति पाप। अनासक्ति स्वर्ग और मोक्ष का द्वार है और आसक्ति नरक का, अधःपतन का द्वार है और संसार-परिभ्रमण का कारण ।
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