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२२ | अपरिग्रह-दर्शन ले तो पहले के बदले दूसरा नंगा हो जायगा। एक भूखा है, और दूसरे के पास रोटी है, और भूखा उससे रोटी छीन लेता है तो दूसरा भूखा रह जायगा। जब तक वस्तु परिचित है और उसका नवीन उत्पादन नहीं हो रहा है, और उपभोक्ता अधिक हैं, तब तक समस्या कैसे हल होगी? तो, मैं कह रहा है कि छीना-झपटी को समस्या का कोई स्थायी और सही हल नहीं है।
दुर्भाग्य से भारतवर्ष में उत्पादन करने पर ध्यान नहीं दिया जाता है। संघर्षों से लड़ा नहीं जाता है, और अपने हाथों जीवन निर्माण करने की कला नहीं सिखाई जाती है। यह कला सिखाई गई होती, तो जो सम्पत्ति प्राप्त की जाती वह सम्पत्ति खुद की न बन कर परिवार की, समाज की या राष्ट्र की होती।
तो दुर्योधन ने उपार्जन करने की कला सीखी नहीं, और सीखने का प्रयत्न भी किया नहीं, तो उसने अपने भाइयों का साम्राज्य छीन लिया। इस प्रकार परिग्रह में से जुआ, अन्याय और अत्याचार निकल कर आया ।
और उसका परिणाम कितना भयंकर हुआ। युद्ध का परिणाम होता है, विनाश ।
कृष्ण, दुर्योधन के पास जाते हैं और एक दूत के रूप में खड़े हो जाते हैं। कृष्ण कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। वे संसार के महान् नायक थे,
और उनकी भृकुटि से संसार में भूकम्प आ सकता था। वे अपनी मान मर्यादा की परवाह न करके एक साधारण व्यक्ति की तरह, दूत के रूप में जाकर खड़े हो जाते हैं, और भिक्षा के लिए पल्ला पसार देते हैं।
मैं समझता हूँ, समय-समय पर अनेक राजनीतिज्ञों ने अनेक भाषण दिये हैं, पर कृष्ण का वह भाषण एकदम अनूठा या । वह इतिहास में आज तक सुरक्षित है, और इतना महान् है, कि प्रत्येक राजनीतिज्ञ के लिए पढ़ने और गुनने की चीज है।
जीवन को कैसे चलाना है, और कैसा बनाना है. इस सम्बन्ध में कृष्ण ने एक अपने उस भाषण में बहुत कुछ कहा है । वे कहते हैं मैं चाहता हूँ, कि पाण्डव भी सुरक्षित रहें और दुर्योधन भा सुरक्षित रहे और कौरवों का जीवन भी. महान् बने। यह सोने के महर गिरने को नहीं हैं। अगर मेरी बात पर कान न दिया गया और रक्त की नदियाँ बहीं, जीवन में ही भाई से भाई जुदा हुए, आपस में एक-दूसरे के गले काटे गए, तो मैं समझता हूँ, कि जितना उनका खून बहेगा, उससे अधिक मेरी आंखों से आंसू बहेंगे । तो
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