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आवश्यकताए और इच्छाए | २१
तो पता लगेगा कि इच्छाओं की बाहुल्यता हो उसका प्रधान कारण है । संसार में जो महायुद्ध हुए हैं, सम्भव है उनके कुछ कारण और भी हों, परन्तु प्रधान कारण तो मनुष्य की असीम इच्छायें ही हैं ।
मनुष्य की इच्छाओं के असीमित रूप ने ही लाखों और करोड़ों मनुष्यों का रक्त बहाया है । जब मनुष्य ने आवश्यकता से अधिक पैय फैलाने की कोशिश की, तभी संघर्ष का बीजारोपण हुआ, और जब पैर फैलाये तो संघर्ष शुरू हो गया । जिनके पास थोड़े साधन हैं और थोड़ी शक्ति है, उनका संघर्ष भी छोटे पैमाने पर होता है और उसका दायरा भी सीमित होता है । किन्तु जो शक्तिशाली है, उनका संघर्ष सीमा को लाँघ जाता है और कभी-कभी वह विश्वव्यापी रूप भी धारण कर लेता है । महाभारत का युद्ध क्यों हुआ ? जिस युद्ध की विकराल ज्वालाओं में भारत के चुनींदा योद्धा पतंगों की तरह भस्म हो गए, जिसने भारत में घोर अन्धकार फैला दिया, जिसकी बदौलत देश श्मशान बन गया और शताब्दियों पर शताब्दिय बीत जाने पर भी न सँभल सका और जिस युद्ध की ज्वालाओं में भारत की संस्कृति, वीरता, ओज और तेज सभी कुछ भस्म हो गया, उस भीषण युद्ध का कारण इच्छाओं का असोमित रूप ही तो था ।
दो भाई अपने जीवन को बँटवारा करके चलाएँ और आने बाली पीढ़ियों से यह न कहें कि वे अपने पुरुषार्थं से अपने जीवन की आवश्यकताओं को पूर्ण करें। जीवन की कला की सहायता से अपने जीवन का निर्माण और उत्थान करें। इसके विपरीत वे उनके लिए बड़े-बड़े महल छोड़ कर चले जाएँ। तो वे पीढ़ियाँ उन ईंटों को ही देखेंगी और पुराने महलों की गिरती हुई ईंटें उनका सिर फोड़तो रहेंगी ।
पाण्डवों और कौरवों के धन का बँटवारा हो गया तो दुर्योधन के मन मैं आया, कि पाण्डवों के सोने के महल क्यों खड़े हैं ? वे प्रगति क्यों कर रहे हैं ? पाण्डवों को एक छोटा-सा राज्य मिला था, पर उन्होंने अपनी शक्ति से 'बहुत बड़ा साम्राज्य बना लिया है । और मुझे जो साम्राज्य मिला था, वह ज्यों का त्यों पड़ा है । वह तनिक भी नहीं बढ़ सका ।
वास्तव में जब वस्तु को बढ़ाने की कला किसी के पास नहीं होती, तो वह छीना-झपटी करने पर ही उतारू हो जाते हैं । सोचते हैं भाई की सम्पत्ति को छीन कर अपने कब्जे में कर लूँ । मगर यह ठीक तरीका नहीं है । मनुष्य की अगर कोई वास्तविक आवश्यकता भी है, तो उसकी पूर्ति का यह ढंग नहीं हो सकता । एक आदमी नंगा है । वह दूसरों के वस्त्र छीन
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