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जीवन की परख
सचमुच आज अधिकांश लोग जीवन के अर्थ को न समझकर अंधेरे में गोते खाए जा रहे हैं अगर वे जीवन का उपयोग, प्रयोग, प्रयोजन आदि जानते, उत्तम, मध्यम, अधम जीवन को परखना जानते तो इस प्रकार का घाटे का सौदा न करते । परन्तु अफसोस है कि वे जीवन का प्रयोजन Eat, drink and be marry' खाओ, पीओ और मौज उड़ाओ ही समझते हैं । वे इन्द्रियों का मनमाना स्वच्छन्द उपयोग करके विविध प्रकार के व्यसनों में फँसकर जीवन को बर्बाद कर देते हैं कितना घाटे का सौदा है यह कि अनन्त पुण्य रूपी पूंजी के बदले मिले हुए बहुमूल्य मानव जीवन को यों ही विषय - कषायों में, प्रमाद में, असंयम में खोकर फिर पछताते हैं । परन्तु बाद में पछताने से क्या होता है ? पहले से ही सावधान होकर विवेकदृष्टि से रास्ता देख-परख कर चलना चाहिए । एक उर्दू का शायर कहता है
हर एक को है जमाने में जिंदगी मकसूद । किसे खबर है कि मकसूदे-जिंदगी क्या है ?
मनुष्य जीवन को प्राप्त कर लेना बहुत बड़ा सुअवसर है, मगर इसका समुचित लाभ तभी मिल सकता है, जब जीवन जीने की विद्या आती हो । गौतमकुलक जीवन विद्या सिखाने वाला ग्रन्थ है । यह बताता है कि मनुष्य अपना जीवन किस ढंग से बिताए ? क्या सोचे ? क्या खाए-पीए ? क्या कार्य करे ? इस संसार में कैसे रहे ? दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करे ? यदि यह विद्या आ गई तो समझ लो, सब कुछ आ गया । अगर यह जीवन विद्या नहीं आई तो दूसरी सब विद्याएँ बेकार हैं, वे जीवन के लिए भारभूत हैं, दिमाग पर बोझ हैं । आज का विद्यार्थी साहित्य, कला, शिल्प, विज्ञान, दर्शनशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति, वकालत, इंजीनियरी, site आदि लौकिक विद्याओं में पारंगत होकर आजीविका, पद और प्रतिष्ठा भी प्राप्त करता है, परन्तु यह तथ्य विस्मृत ही बना रहता है कि जीवन जीने की कला या विद्या भी सीखनी आवश्यक है। स्कूली शिक्षा के साथ-साथ सबसे बड़ी आवश्यकता है, जीवन को सार्थक करने वाली उस जीवन-विद्या की, जो अनेक विचित्रताओं से भरे ऊबड़-खाबड़ जीवनपथ पर मनुष्य के चरण बढ़ाने में सहायता दे । संसार के अधिकांश महापुरुषों का अक्षर ज्ञान आज के अनेकों उच्च-शिक्षा सम्पन्न एम. ए., पी-एच. डी. डिग्रीधारी लोगों से कम ही था, लेकिन जीवन विद्या का पारस था उनके पास । इसलिए जिस क्षेत्र के ज्ञान से वे जीवन विद्या के पारस को छुआ देते उसी क्षेत्र का उनका ज्ञान स्वर्ण समान सम्यग्ज्ञान बन जाता ।
मुझे एक रोचक उदाहरण याद आ रहा है-
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एक प्रोफेसर साहब नौका में बैठकर नदी पार कर रहे थे। रास्ते में उन्होंने मल्लाह से पूछा - "तू भूगोल या इतिहास जानता है ?" मल्लाह बोला – ये मैंने तो क्या मेरे बाप-दादों ने भी नहीं पढ़े। मैं नहीं जानता - भूगोल या इतिहास किस चिड़िया का नाम है ?" प्रोफेसर साहब बोले - " तब तो तेरी पाव जिन्दगी यों ही
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