Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07 Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Agam Aradhana KendraPage 97
________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद सारे आठ-आठ मंगल, ध्वजाएँ और छत्रातिछत्र हैं । [१७७] सुधर्मासभा के उत्तरपूर्व में एक विशाल सिद्धायतन (जिनालय) है जो साढे बारह योजन का लम्बा, छह योजन एक कौस चौड़ा और नौ योजन ऊँचा है । द्वार, मुखमण्डप, प्रेक्षागृहमण्डप, ध्वजा, स्तूप, चैत्यवृक्ष, माहेन्द्रध्वज, नन्दा पुष्करिणियाँ, मनोगुलिकाओं का प्रमाण, गोमाणसी, धूपघटिकाएँ, भूमिभाग, उल्लोक आदि का वर्णन सुधर्मासबा के समान कहना । उस सिद्धायतन के बहुमध्य देशभाग में एक विशाल मणिपीठिका है जो दो योजन लम्बी-चौड़ी, एक योजन-मोटी है, सर्व मणियों की बनी हुई है, स्वच्छ है । उस के ऊपर एक विशाल देवच्छंदक है, जो दो योजन का लम्बा-चौड़ा और कुछ अधिक दो योजन का ऊँचा है, सर्वात्मना रत्नमय है और स्वच्छ स्फटिक के समान है । उस देवच्छंदक में जिनोत्सेधप्रमाण एक सौ आठ जिन (अरिहंत) प्रतिमाएँ रखी हुई हैं । . उन प्रतिमा के हस्ततल तपनीय स्वर्ण के हैं, नख अंकरत्नों के हैं और मध्यभाग लोहिताक्ष रत्नों से युक्त है, पांव स्वर्ण के हैं, गुल्फ, जंघाए, जानु, ऊरु और गात्रयष्टि कनकमयी है, उनकी नाभियां तपनीय स्वर्ण की हैं, रोमराजि रिष्टरत्नों की है, चूचुक तपनीय स्वर्ण के हैं, श्रीवत्स तपनीय स्वर्ण के हैं, उनकी भुजाएँ, पसलिया और ग्रीवा कनकमयी है, उनकी मूछे रिष्टरत्न की हैं, होठ विद्रुममय हैं, दांत स्फटिकरत्न के हैं, तपनीय स्वर्ण की जिह्वाएँ हैं, तपनीय स्वर्ण के तालु हैं, कनकमयी नासिका है, मध्यभाग लोहिताक्षरत्नों की ललाई से युक्त है, उनकी आँखें अंकरत्न की हैं और मध्यभाग लोहिताक्ष रत्न की ललाई से युक्त है, दृष्टि पुलकित है, आँखों की तारिका, अक्षिपत्र और भौहें रिष्टरत्नों की हैं, गाल स्वर्ण के हैं, कान स्वर्ण के हैं, ललाट कनकमय हैं, शीर्ष गोल वज्ररत्न के हैं, केशों की भूमि तपनीय स्वर्ण की है और केश रिटरत्नों के हैं । उन जिनप्रतिमाओं के पीछे अलग-अलग छत्रधारिणी प्रतिमाएँ हैं । वे प्रतिमाएँ लीलापूर्वक कोरंट पुष्प की मालाओं से युक्त हिम, रजत, कुन्द और चन्द्र के समान सफेद आतपत्रों को धारण किये हुये खड़ी हैं । उन जिनप्रतिमाओं के दोनों पार्श्वभाग में अलगअलग चंवर धारण करने वाली प्रतिमाएँ हैं । वे प्रतिमाएँ चन्द्रकान्त मणि, वज्र, वैडूर्य आदि नाना मणिरत्नों व सोने से खचित और निर्मल बहुमूल्य तपनीय स्वर्ण के समान उज्ज्वल और विचित्र दंडों एवं शंख-अंकरत्न-कुंद-जलकण, चांद एवं क्षीरोदधि को मथने से उत्पन्न फेनपुंज के समान श्वेत, सूक्ष्म और चांदी के दीर्घ बाल वाले धवल चामरों को लीलापूर्वक धारण करती हुई स्थित हैं । उन जिनप्रतिमाओं के आगे दो-दो नाग प्रतिमाएँ, दो-दो यक्ष प्रतिमाएँ, दोदो भूत प्रतिमाएँ, दो-दो कुण्डधार प्रतिमाएँ हैं । वे सर्वात्मना रत्नमयी हैं, स्वच्छ हैं, मृदु हैं, सूक्ष्म पुद्गलों से निर्मित हैं, घृष्ट-मृष्ट, नीरजस्क, निष्पंक यावत् प्रतिरूप हैं । उन जिनप्रतिमाओं के आगे १०८-१०८ घंटा, चन्दनकलश, झारियां तथा इसी तरह आदर्शक, स्थाल, पात्रियां, सुप्रतिष्ठक, मनोगुलिका, जलशून्य घड़े, चित्र, रत्नकरण्डक, हयकंठक यावत् वृषभकंठक, पुष्पचंगेरियां यावत् लोमहस्तचंगेरियां, पुष्पपटलक, तेलसमुद्गक यावत् धूप के कडुच्छुक हैं । उस सिद्धायतन के ऊपर बहुत से आठ-आठ मंगल, ध्वजाएँ और छत्रातिछत्र हैं, जो उत्तम आकार के सोलह रत्न यावत रिष्टरत्नों से उपशोभित हैं। [१७८] उस सिद्धायतन के उत्तरपूर्व दिशा में एक बड़ी उपपातसभा है । उपपात सभाPage Navigation
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