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जीवाजीवाभिगम-८/-/३६७
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(प्रतिपत्ति-८-"नवविध") ३६७] जो नौ प्रकार के संसारसमापनक जीवों का कथन करते हैं, वे ऐसा कहते हैं-१. पृथ्वीकायिक, २. अप्कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक, ६. द्वीन्द्रिय, ७. त्रीन्द्रिय, ८. चतुरिन्द्रिय और ९. पंचेन्द्रिय । सबकी स्थिति कहना ।
पृथ्वीकायिकों की संचिट्ठणा पृथ्वीकाल है, इसी तरह वायुकाय पर्यन्त कहना । वनस्पतिकाय की संचिट्ठणा अनन्तकाल है । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय की संचिट्ठणा संख्येयकाल है और पंचेन्द्रियों की संचिट्ठणा साधिक हजार सागरोपम है । सबका अन्तर अनन्तकाल है । केवल वनस्पतिकायिकों का अन्तर असंख्येय काल है ।
अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे तेजस्कायिक असंख्येयगुण हैं, उनसे पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वायुकायिक क्रमशः विशेषाधिक हैं और उनसे वनस्पतिकायिक अनन्तगुण हैं ।
( प्रतिपत्ति-९-"दशविध" [३६८] जो आचार्यादि दस प्रकार के संसारसमापनक जीवों का प्रतिपादन करते हैं, वे कहते हैं-१. प्रथमसमयएकेन्द्रिय, २. अप्रथमसमयएकेन्द्रिय, ३. प्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ४. अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ५. प्रथमसमयत्रीन्द्रिय, ६. अप्रथमयमत्रीन्द्रिय, ७. प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ८. अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ९. प्रथमसमयपंचेन्द्रिय, १०. अप्रथमसमयपंचेन्द्रिय ।
भगवन् ! प्रथमसमयएकेन्द्रिय की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी एक समय । अप्रथमसमयएकेन्द्रिय की जघन्य एक समय कम क्षुल्लक-भवग्रहण और उत्कर्ष से एक समय कम बावीस हजार वर्ष । इस प्रकार सब प्रथमसमयिकों की जघन्य और उत्कर्ष से भी एक समय की स्थिति कहना । अप्रथमसमय वालों की स्थिति जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभव और उत्कर्ष से जिसकी जो स्थिति है, उसमें एक समय कम करके कथन करना यावत् पंचेन्द्रिय की एकसमय कम तेतीस सागरोपम की स्थिति है ।
प्रथमसमयवालों की संचिट्ठणा जघन्य और उत्कर्ष से भी एक समय है । अप्रथमसमयवालों की जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से एकेन्द्रियों की वनस्पतिकाल और द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियों की संखेयकाल एवं पंचेन्द्रियों की साधिक हजार सागरोपम पर्यन्त संचिट्ठणा है । भगवन् ! प्रथमसमयएकेन्द्रियों का अन्तर कितना होता है ? गौतम ! जघन्य से समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । अप्रथमसमयएकेन्द्रिय का जघन्य अन्तर एकसमय अधिक एक क्षुल्लकभव है और उत्कर्ष से संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम है । शेष सब प्रथमसमयिकों का अन्तर जघन्य से एक समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है । शेष अप्रथमसमयिकों का जघन्य अन्तर समयाधिक एक क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है ।।
सब प्रथमसमयिकों में सबसे थोड़े प्रथमसमय पंचेन्द्रिय हैं, उनसे प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे प्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे प्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक