Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

Previous | Next

Page 162
________________ जीवाजीवाभिगम - १०/३/३८३ और उनसे नपुंसकवेदक अनन्तगुण हैं । [३८४] अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं-चक्षुर्दर्शनी, अचक्षुर्दर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी । चक्षुर्दर्शनी काल से जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक एक हजार सागरोपम तक रह सकता है । अचक्षुर्दर्शनी दो प्रकार के हैं- अनादि- अपर्यवसित और अनादिसपर्यवसित । अवधिदर्शनी जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से साधिक दो छियासठ सागरोपम तक रह सकता है । केवलदर्शनी सादि - अपर्यवसित है । चक्षुर्दर्शनी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । दोनों प्रकार के अचक्षुर्दर्शनी का अन्तर नहीं है । अवधिदर्शनी का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष वनस्पतिकाल है । केवलदर्शनी का अन्तर नहीं है। अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े अवधिदर्शनी, उनसे चक्षुर्दर्शनी असंख्येयगुण हैं, उनसे केवलदर्शनी अनन्तगुण हैं और उनसे अचक्षुर्दर्शनी भी अनन्तगुण हैं । १६१ [३८५] अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं-संयत, असंयत, संयतासंयत और नोसंयतनोअसंयत-नोसंयतासंयत । संयत, संयतरूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक रहता है । असंयत का कथन अज्ञानी की तरह कहना । संयतासंयत जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि । नोसंयत-नो असंयत-नोसंयतासंयत सादि - अपर्यवसित है । संयत और संयतासंयत का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त है । असंयतों में से आदि के दो प्रकारों में अन्तर नहीं है । सादि सपर्यवसित असंयत का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि । चौथे नोसंयत- नोअसंयत-नोसंयतासंयत का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े संयत हैं, उनसे संयतासंयत असंख्येयगुण हैं, उनसे नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत अनन्तगुण हैं और उनसे असंयत अनन्तगुण हैं । प्रतिपत्ति- १०- सर्वजीव - ४ [३८६] जो ऐसा कहते हैं कि पांच प्रकार के सर्व जीव हैं, उनके अनुसार वे पांच भेद इस प्रकार हैं-क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी, लोभकषायी और अकषायी । क्रोध यावत् मायाकषायी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त तक उस रूप में रहते हैं । लोभकषायी जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक उस रूप में रह सकता है । अकषायी दो प्रकार के हैं सादि- अपर्यवसित और सादि - सपर्यवसित । सादि - सपर्यवसित जघन्य एक समय, उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त तक उस रूप में रह सकता है । क्रोध यावत् मायाकषायी का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त है । लोभकषायी का अंतर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अंतर्मुहूर्त है । अकषायी में अंतर नहीं है । [३८७] अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े अकषायी हैं, उनसे मानकषायी अनन्तगुण हैं, उनसे क्रोधकषायी, मायाकषायी और लोभकषायी क्रमशः विशेषाधिक जानना चाहिए । [३८८] अथवा सब जीव पांच प्रकार के हैं-नैरयिक, तिर्यक्योनिक, मनुष्य, देव और सिद्ध । संचिट्ठणा और अन्तर पूर्ववत् कहना । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े मनुष्य, उनसे नैरयिक असंख्येयगुण, उनसे देव असंख्येयगुण, उनसे सिद्ध अनन्तगुण और उनसे तिर्यग्योनिक अनन्तगुण हैं । इनकी कायस्थिति, अन्तर और अल्पबहुत्व पहले कहा जा चुका है । 7 11

Loading...

Page Navigation
1 ... 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241