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प्रज्ञापना-४/-/३०६
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की स्थिति जघन्य पल्योपम से कुछ अधिक और उत्कृष्ट नौ पल्योपम है । इनकी अपर्याप्त देवियो की स्थिति अन्तर्मुहूर्त ही है । इनकी पर्याप्त देवियो की स्थिति इनकी औधिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम है । ईशानकल्प में अपरिगृहीता देवियों की स्थिति इनकी औधिक देवियो के समान ही है ।
सनत्कुमारकल्प में देवों की स्थिति जघन्य दो सागरोपम और उत्कृष्ट सात सागरोपम है । इनके अपर्याप्त की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त की है । - इनके पर्याप्तो की स्थिति इनकी औधिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम समझना । माहेन्द्रकल्प के देवों की स्थिति सनत्कुमारदेवो से कुछ अधिक समझना । ब्रह्मलोककल्प में देवों की स्थिति जघन्य सात सागरोपम और उत्कृष्ट दस सागरोपम है । इनके अपर्याप्तको की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । इनके पर्याप्तको की स्थिति इनकी औधिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम समझना।
___ लान्तककल्प में देवों की स्थिति जघन्य दस सागरोपम और उत्कृष्ट चौदह सागरोपम है। इनके अपर्याप्तको की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । इनके पर्याप्तको की स्थिति इनकी औधिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम समझना । महाशुक्रकल्प में देवों की स्थिति जघन्य चौदह सागरोपम तथा उत्कृष्ट सत्तरह सागरोपम है । इनके अपर्याप्तको की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त की है । इनके पर्याप्तको की स्थिति औधिक से अन्तर्मुहर्त कम हैं । सहस्रारकल्प में देवों की स्थिति जघन्य सत्तरह सागरोपम और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम है । इनके अपर्याप्तको की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त है । इनके पर्याप्तको की स्थिति औधिक से अन्तर्मुहूर्त कम है ।
आनतकल्प के देवों की स्थिति जघन्य अठारह सागरोपम और उत्कृष्ट उन्नीस सागरोपम है । भगवन् ! आनतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है । इनके अपर्याप्तको की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है इनके पर्याप्तको की स्थिति औधिक से अन्तर्मुहूर्त कम है । प्राणतकल्प में देवों की स्थिति जघन्य उन्नीस सागरोपम है और उत्कृष्ट बीस सागरोपम है । भगवन् ! प्राणतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? इनके अपर्याप्तको की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । इनके पर्याप्तको की स्थिति औधिक से अन्तर्मुहर्त कम है । आरणकल्प में देवों की स्थिति जघन्य बीस सागरोपम
और उत्कृष्ट इक्कीस सागरोपम है । इनके अपर्याप्तको की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । इनके पर्याप्तको की स्थिति औधिक से अन्तर्मुहूर्त कम है । अच्युतकल्प में देवों की स्थिति जघन्य इक्कीस सागरोपम और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम है । इनके अपर्याप्तको की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । इनके पर्याप्तको की स्थिति औधिक से अन्तर्मुहुर्त कम है ।
भगवन ! अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट तेईस सागरोपम की है । अधस्तन-मध्यम ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य तेईस सागरोपम और उत्कृष्ट चौवीस सागरोपम है । अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य चौवीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट पच्चीस सागरोपम की है । इन तीनो अधस्तन ग्रैवेयको के अपर्याप्तक देवो की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहुर्त है तथा इनके पर्याप्तक देवो की स्थिति अपनी अपनी औधिक स्थिति से अन्तर्मुहुर्त कम समझ लेना ।