Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 237
________________ २३६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद तथा ऊपर के चार स्पर्शो से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों में कहना । अजघन्य - अनुत्कृष्ट गुण काले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों में भी इसी प्रकार कहना । विशेषता यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है । भगवन् ! जघन्यगुण काले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकीजघन्यगुण का असंख्यातप्रदेशी पुद्गलस्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों स्थिति और अवगाहना से चतुः स्थानपतित है तथा कृष्णवर्ण के पर्यायों से तुल्य है और शेष वर्ण आदि तथा ऊपर के चार स्पर्शो से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले को कहना । इसी प्रकार मध्यमगुण काले में भी कहना । विशेष इतना कि वह स्वस्थान में षट्स्थानपतित है । जघन्यगुण काले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय । क्योंकी - जघन्यगुण काले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों से तुल्य है तथा अवशिष्ट वर्ण आदि से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले में जानना । इसी प्रकार मध्यगुण काले को कहना । इसी प्रकार शेष वर्ण, गन्ध और रस को भी कहना । विशेष यह कि सुगन्ध और दुर्गन्धवाले परमाणुपुद्गल साथ-साथ नहीं होते । तिक्त रस वाले में शेष रस का कथन नहीं करना, कटु आदि रसों में भी ऐसा ही समझना । भगवन् ! जघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकीजघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है एवं वर्ण, गन्ध तथा रस से षट्स्थानपतित है, कर्कशस्पर्श के पर्यायों से तुल्य है और अवशिष्ट सात स्पर्शो से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुणकर्कश में समझना । मध्यमगुणकर्कश को भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है । मृदु, गुरु और लघु स्पर्श में भी इसी प्रकार जानना । I जघन्यगुण शीत परमाणुपुद्गलों के कितने अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी - जघन्यगुणशीत परमाणुपुद्गल द्रव्य, प्रदेशों, और अवगाहना से तुल्य है, स्थिति से चतुः स्थानपतित है तथा वर्ण, गन्ध और रसों से षट्स्थानपतित है, शीतस्पर्श के पर्यायों से तुल्य है । इसमें उष्णस्पर्श का कथन नहीं करना । स्निग्ध और रूक्षस्पर्शो के पर्यायों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुणशीत के पर्यायों में कहना । मध्यमगुण शीत में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है । जघन्यगुणशीत प्रदेशिक स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी - जघन्यगुणशीत प्रदेश स्कन्धद्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है । यदि हीन हो तो एकप्रदेश हीन होता है, यदि अधिक हो तो एकप्रदेश अधिक होता है, स्थिति से चतुःस्थानपतित है तथा वर्ण, गंध और रस के पर्यायां स्थानपतित है एवं शीतस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है और उष्ण, स्निग्ध तथा रूक्ष स्पर्श से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुणशीत को जानना । मध्यमगुणशीत को भी इसी प्रकार समझना । इसी प्रकार दशप्रदेशी स्कन्धों तक को कहना विशेष यह कि अवगाहना से पर्याय की वृद्धि करनी चाहिए । यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध तक नौ प्रदेश बढ़ते हैं ।

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