Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 233
________________ २३२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [३२३] भगवन् ! रूपी अजीव पर्याय कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार-स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्ध-प्रदेश और परमाणुपुद्गल (के पर्याय) । भगवन् ! क्या वे संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं । भगवन् ! किस हेतु से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! परमाणु-पुद्गल अनन्त हैं; द्विप्रदेशिक यावत् दशप्रदेशिकस्कन्ध अनन्त हैं, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं । हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा है कि वे अनन्त हैं । [३२४] भगवन् ! परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! एक परमाणुपुद्गल, दूसरे परमाणुपुद्गल से द्रव्य, प्रदेशों और अवगाहना की दृष्टि से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अभ्यधिक है । यदि हीन है, तो असंख्यातभाग हीन है, संख्यातभाग हीन है अथवा संख्यातगुण हीन है, अथवा असंख्यातगुण हीन है; यदि अधिक है, तो यावत् असंख्यातगुण अधिक है । कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, और कदाचित् अधिक है । यदि हीन है तो अनन्तभाग, असंख्यातभाग, संख्यातभाग, संख्यातगुण, असंख्यातगुण या अनन्तगुण-हीन है । यदि अधिक है तो यावत् अनन्तगुण अधिक है । इसी प्रकार अवशिष्ट वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है । स्पर्शों में शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है । हे गौतम ! इस हेतु से ऐसा कहा गया है कि परमाणु-पुद्गलों के अनन्त पर्याय प्ररूपित हैं | द्विप्रदेशिक स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध, द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है । यदि हीन हो तो एक प्रदेश हीन होता है । यदि अधिक हो तो एक प्रदेश अधिक होता है । स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्ण आदि से और उपर्युक्त चार स्पर्शों से षट्स्थानपतित होता है । इसी प्रकार त्रिप्रदेशिक स्कन्धों में कहना । विशेषता यह कि अवगाहना से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है । यदि हीन हो तो एक या द्विप्रदेशों से हीन है । यदि अधिक हो तो एक अथवा दो प्रदेश अधिक होता है । इसी प्रकार यावत् दशप्रदेशिक स्कन्धों तक कहना । विशेष यह कि अवगाहना से प्रदेशों की वृद्धि करना; यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध नौ प्रदेश-हीन तक होता है । __ संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-संख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है ! यदि हीन हो तो, संख्यात भाग हीन या संख्यातगुण हीन होता है । यदि अधिक हो तो संख्यातभाग अधिक या संख्यात गुण अधिक होता है । अवगाहना से द्विस्थानपतित होता है । स्थिति से चतुःस्थानपतित होता है । वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों के पर्यायों से षट्स्थानपतित होता है । असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे हैं । क्योंकी-असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों से षट्स्थानपतित है । अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी

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