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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! एक द्वीन्द्रिय जीव दूसरे द्वीन्द्रिय से द्रव्य से और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, और कदाचित् अधिक है । यदि हीन है तो, असंख्यातभाग हीन होता है, यावत् असंख्यातगुण हीन होता है । अगर अधिक होता है तो असंख्यातभाग अधिक, यावत् असंख्यातगुणा अधिक होता है। स्थिति से त्रिस्थान-पतित होता है, तथा वर्णादि से (पूर्ववत्) । षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीवों में समझना । इसी तरह चतुरिन्द्रिय जीवों की अनन्तता होती है । विशेष यह है कि उनमें चक्षुदर्शन भी होता है ।
३१२] पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, नैरयिकों समान कहना । - [३१३] भगवन् ! मनुष्यों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । क्योंकी-गौतम ! द्रव्य से एक मनुष्य, दूसरे मनुष्य से तुल्य है, प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना और स्थिति से भी चतुःस्थानपतित है, तथा वर्णादि एवं चार ज्ञान के पर्यायों से षट्स्थानपतित है, तथा केवलज्ञान पर्यायों से तुल्य है, तीन अज्ञान तथा तीन दर्शन से षट्स्थानपतित है, और केवलदर्शन के पर्यायों से तुल्य है ।
[३१४] वाणव्यन्तर देव अवगाहना और स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित हैं तथा वर्ण आदि से षट्स्थानपतित हैं । ज्योतिष्क और वैमानिक देवों एसे ही है । विशेषता यह कि स्थिति से त्रिस्थानपतित है ।
[३१५] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले नैरयिकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । क्योंकी-गौतम ! जघन्य अवगाहना वाला नैरयिक, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले नैरयिक से द्रव्य, प्रदेशों और अवगाहना से तुल्य है; (किन्तु) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थान पतित है, और वर्णादि, तीन ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है । उत्कृष्ट अवगाहना वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-उत्कृष्ट अवगाहना वाला नारक, दूसरे उत्कृष्ट अवगाहना वाले नारक से द्रव्य, प्रदेशों और अवगाहना से तुल्य हैं; किन्तु स्थिति से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, और कदाचित् अधिक है । यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन है या संख्यातभाग हीन है । यदि अधिक है तो असंख्यात भाग अधिक है, अथवा संख्यातभाग अधिक है । वर्ण, इत्यादि से पूर्ववत् षट्स्थानपतित है । अजघन्यअनुत्कृष्ट अवगाहना वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-गौतम ! मध्यम अवगाहना वाला एक नारक, अन्य मध्यम अवगाहना वाले नैरयिक से द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना और स्थिति से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है । यदि हीन है तो, असंख्यातभाग हीन है यावत् असंख्यातगुण हीन है । यदि अधिक है तो असंख्यात भाग अधिक है यावत् असंख्यातगुण अधिक है । वर्ण आदि से (पूर्ववत्) षट्स्थानपतित है। इसीलिए कहां है कि नैरयिकों के अनन्त पर्याय है ।
- भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले नारकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । क्योंकी-गौतम ! एक जघन्य स्थिति वाला नारक, दूसरे जघन्य स्थिति वाले नारक से द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है; स्थिति से तुल्य है, (पूर्ववत्) वर्ण आदि से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिवाले नारक में भी कहना । अजघन्य-अनुत्कृष्ट