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प्रज्ञापना- ५ /-/ ३०८
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हीन है, तो अनन्तभाग हीन, असंख्यातभाग हीन या संख्यातभाग हीन होता है; अथवा संख्यातगुण हीन, असंख्यातगुण हीन या अनन्तगुण हीन होता है । यदि अधिक है तो अनन्तभाग अधिक, यावत् अनन्तगुण अधिक होता है । नीलवर्ण, रक्तवर्ण, पीतवर्ण, हारिद्रवर्ण और शुक्लवर्णपर्यायों से - षट्स्थानपतित होता है । सुगन्ध और दुर्गन्धपर्यायों से - षट्स्थानपतित है । तिक्तरस यावत् मधुररसपर्यायों से - षट्स्थानपतित है । कर्कश यावत् रूक्ष- स्पर्शपर्यायों सेषट्स्थानपतित होता है । ( इसी प्रकार ) आभिनिबोधिकज्ञान यावत् अवधिज्ञानपर्यायों, मतिअज्ञान यावत् विभंगज्ञानपर्यायों, चक्षुदर्शन यावत् अवधिदर्शनपर्यायों से - षट्स्थानपतित हीनाधिक होता है । हे गौतम! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है, कि 'नारकों के पर्याय अनन्त हैं ।' [३०९] भगवन् ! असुरकुमारों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! एक असुरकुमार दूसरे असुरकुमार से द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से तुल्य है; अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, इसी प्रकार वर्ण, गन्ध, स्पर्श, ज्ञान, अज्ञान, दर्शन आदि पर्यायो से (पूर्वसूत्रवत् ) षट्स्थानपतित है । हे गौतम ! इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि असुरकुमारों के पर्याय अनन्त कहे हैं । इसी प्रकार जैसे नैरयिकों और असुरकुमारों के समान यावत् स्तनितकुमारों के ( अनन्तपर्याय कहने चाहिए 1) [३१०] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा है ? गौतम ! एक पृथ्वीकायिक दूसरे पृथ्वीकायिक से द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है । यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन है यावत् असंख्यातगुण हीन है । यदि अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक है यावत् असंख्यातगुण अधिक है । स्थिति कदाचित् हीन है कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है । यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन है, या संख्यातभाग हीन है, अथवा संख्यातगुण हीन है । यदि अधिक है तो असंख्यात भाग अधिक है, या संख्यात भाग अधिक है, अथवा संख्यातगुण अधिक है । वर्णों, गन्धों, रसों और स्पर्शो (के पर्यायों) से, मति- अज्ञान पर्यायों, श्रुत-अज्ञानपर्यायों एवं अचक्षुदर्शनपर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है ।
भगवन् ! अप्कायिक जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा है ? गौतम ! एक अप्कायिक दूसरे अप्कायिक से द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से चतुः स्थानपतित है, स्थिति से त्रिस्थान - पतित है । वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श मति- अज्ञान, श्रुत- अज्ञान और अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। भगवन् ! तेजस्कायिक जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त, क्योंकी - एक तेजस्कायिक, दूसरे तेजस्कायिक से द्रव्य से तुल्य है, इत्यादि पूर्ववत् । भगवन् ! वायुकायिक जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त क्योंकि गौतम ! एक वायुकायिक, दूसरे वायुकायिक से द्रव्य से तुल्य है, इत्यादि पूर्ववत् । भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त क्योंकी - गौतम ! एक वनस्पतिकायिक दूसरे वनस्पतिकायिक से द्रव्य से तुल्य है, इत्यादि पूर्ववत् ।
[३११] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । भगवन् !
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