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प्रज्ञापना- ५ /-/ ३१५
स्थितिवाले नारक में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह है कि स्वस्थान में चतुःस्थानपतित है ।
भगवन् ! जघन्यगुण काले नैरयिकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । क्योंकीगौतम ! एक जघन्यगुण काला नैरयिक, दूसरे जघन्यगुण काले नैरयिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, इत्यादि पूर्ववत् यावत् काले वर्ण से तुल्य है शेष वर्णादि से पट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले समझ लेना । इसी प्रकार अजघन्य - अनुत्कृष्ट गुण काले में जाने लेना । विशेष इतना कि कालेवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित होता है । यों काले वर्ण के पर्यायों की तरह शेष चारों वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श की अपेक्षा से भी ( समझ लेना ।)
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जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी नैरयिकों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी - गौतम ! एक जघन्य आभिनिबोधिकज्ञानी, दूसरे जघन्य आभिनिबोधिकज्ञानी नैरयिक से द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना और स्थिति से चतुः स्थानपतित है, वर्ण आदि से षट्स्थानपतित है, आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान तथा तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट आभिनिबोधिक ज्ञानी में समझना । अजघन्य - अनुत्कृष्ट आभिनिबोधिक ज्ञानी में भी इसी प्रकार है । विसे, यह वह आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से भी स्वस्थान में षट्स्थानपतित है । श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी में भी ऐसा ही जानना । विशेष यह है कि जिसके ज्ञान होता है, उसके अज्ञान नहीं होता । तीनों ज्ञानी नैरयिकों के समान तीनों अज्ञानी में भी कहना । विशेष यह कि जिसके अज्ञान होते हैं, उसके ज्ञान नहीं होते ।
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जघन्य चक्षुदर्शनी नैरयिकों के अनन्तपर्याय हैं । क्योंकी - जघन्य चक्षुदर्शनी नैरयिक से द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, यावत् तीन अज्ञान से, षट्स्थानपतित है । चक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है, तथा अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन के पर्यायों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टचक्षुदर्शनी में भी समझना । अजघन्य - अनुत्कृष्ट चक्षुदर्शनी नैरयिकों में भी यहीं जानना । विशेष इतना कि स्वस्थान में भी वह षट्स्थानपतित होता है । चक्षुदर्शनी नैरयिकों के समान अचक्षुदर्शनी एवं अवधिदर्शनी में भी समझना ।
[३१६] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले असुरकुमारों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! एक असुरकुमार दुसरे असुर कुमार से द्रव्य, प्रदेशों तथा अवगाहना से तुल्य है; स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्ण आदि, तीन ज्ञान, तीन अज्ञानों तथा तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहनावाले असुरकुमारों में जानना, तथा इसी प्रकार मध्यम अवगाहनावाले असुरकुमारों में जानना । विशेष यह कि वह स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित हैं । इसी तरह से स्तनितकुमारों तक जानना ।
[३१७] भगवन् ! जघन्य अवगाहनावाले पृथ्वीकायिक जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । क्योंकी - जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक द्रव्य, प्रदेशों तथा अवगाहना से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से, दो