Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 218
________________ प्रज्ञापना-४/-/२९८ २१७ (पद-४-"स्थिति") [२९८] भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की । भगवन् ! अपर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहर्त की है । भगवन् ! पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम तेतीस सागरोपम की । रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम है । अपर्याप्तक-रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तकरत्नप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहुर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम है । शर्कराप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन सागरोपम है । भगवन् ! अपर्याप्त शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । पर्याप्तक-शर्कराप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन सागरोपम है । वालुकाप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य तीन और उत्कृष्ट सात सागरोपम है । अपर्याप्तक-वालुकाप्रभापृथ्वी नारकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तकवालुकाप्रभापृथ्वी नारकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त कम तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम है । पंकप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य सात और उत्कृष्ट दस सागरोपम है । अपर्याप्तक-पंकप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक-पंकप्रभापृथ्वी नारकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस सागरोपम है । धूमप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य दस और उत्कृष्ट सत्रह सागरोपम की है । धूमप्रभापृथ्वी अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति जघन्य ओर उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । धूमप्रभापृथ्वी पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त कम दस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सत्तरह सागरोपम की है । तमःप्रभापृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य सत्तरह और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम है । तमःप्रभापृथ्वी अपर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति जघन्य है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । तमःप्रभापृथ्वी पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त कम सत्तरह सागरोपम और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम बाईस सागरोपम की है। __ अधःसप्तमपृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम है । अपर्याप्तक-अधःसप्तम पृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक-अधःसप्तमपृथ्वी नैरयिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त कम बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की है । [२९९] भगवन् ! देवों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्प और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम । अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक-देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त्त कम तेतीस सागरोपम की है । देवियों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पचपन

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