Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 220
________________ प्रज्ञापना-४/-/३०० २१९ है। तेजस्कायिक अपर्याप्तकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । पर्याप्त तेजस्कायिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम तीन रात्रि-दिन की है । सूक्ष्म तेजस्कायिकों के औधिक, अपर्याप्त और पर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त है । बादर तेजस्कायिक की स्थिति सामान्य तेजस्कायिक समान है । विशेष यह कि उत्कृष्ट पर्याप्तक में अन्तर्मुहूर्त कम करना । वायुकायिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष है । अपर्याप्तक वायुकायिक जीवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक वायुकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन हजार वर्ष है । सूक्ष्म वायुकायिक की औधिक, अपर्याप्तक और पर्याप्तक तीनो स्थिति अन्तर्मुहर्त की है । बादर वायुकायिक को सामान्य वायुकायिक के समान जानना । विशेष यह कि पर्याप्तको की उत्कृष्ट स्थिति में अन्तर्मुहर्त कम करना । वनस्पतिकायिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष है । अपर्याप्त वनस्पतिकायिक की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है । पर्याप्तक वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम दस हजार वर्ष है । सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों के औधिक, अपर्याप्तकों, और पर्याप्तकों की स्थिति जघन्यतः और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त है । बादर वनस्पतिकायिक को औधिक की तरह ही जानना विशेष यह कि उनके पर्याप्तक में अन्तर्मुहूर्त कम करना । [३०१] भगवन् ! द्वीन्द्रिय की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बारह वर्ष । अपर्याप्त द्वीन्द्रिय स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । पर्याप्त द्वीन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम बारह वर्ष है। त्रीन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट उनपचास रात्रि दिन है । अपर्याप्त त्रीन्द्रिय की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । पर्याप्तक त्रीन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम उनपचास रात्रि-दिन है । चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट स्थिति छह मास है । अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । पर्याप्त चतुरिन्द्रिय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम छह मास है । [३०२] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है । इनके अपर्याप्त की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । इनके पर्याप्त की जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम तीन पल्योपम है । सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है । इनके अपर्याप्त की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त है । इनके पर्याप्त की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम पूर्वकोटि । गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति औधिक पंचेन्द्रियतिर्यंच के समान जानना । जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक के समान जानना । संमूर्छिम तथा गर्भज ये दोनो

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