Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 160
________________ जीवाजीवाभिगम-१०/२/३७५ १५९ है, सादि-सपर्यवसित का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक ६६ सागरोपम है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है, जो देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त रूप है । अल्पबहुत्वद्वार में सबसे थोड़े सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं, उनसे सम्यग्दृष्टि अनन्तगुण हैं और उनसे मिथ्यादृष्टि अनन्तगुण हैं । [३७६] अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं-परित्त, अपरित्त और नोपरित्त-नोअपरित। परित्त दो प्रकार के हैं-कायपरित और संसारपरित । भगवन् ! कायपरित, कायपरित के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्येय काल तक यावत् असंख्येय लोक । भंते ! संसारपस्ति, संसापरित्त के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहुर्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल जो यावत् देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्तरूप है । भगवन् ! अपरित, अपरित्त के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! अपस्ति दो प्रकार के हैं-काय-अपरित और संसार-अपरित । भगवन् ! कायअपरित, काय-अपरित्त के रूप में कितने काल रहता है ? गौतम ! जघन्य से अंतर्मुहर्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल अर्थात् वनस्पतिकाल तक ।। संसार-अपस्ति दो प्रकार के हैं अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित । नोपरितनोअपरित सादि-अपर्यवसित है । कायपरित्त का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर वनस्पतिकाल है । संसारपरित का अन्तर नहीं है | काय-अपरित का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्येयकाल अर्थात् पृथ्वीकाल है । अनादि-अपर्यवसित, परित्त, अनादि-सपर्यवसित, संसारापरित, अनादि-सपर्यवसित, संसारापरित्त तथा नोपरित्त-नोअपरित्त का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े परित्त हैं, नोपरित्त-नोअपरित्त अनन्तगुण हैं और अपरित्त अनन्तगुण हैं । [३७७] अथवा सब जीव तीन तरह के हैं-पर्याप्तक, अपर्याप्तक और नोपर्याप्तकनोअपर्याप्तक । भगवन् ! पर्याप्तक, पर्याप्तक रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व । भगवन् ! अपर्याप्तक, अपर्याप्तक के रूप में कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य उत्कर्ष से भी अन्तर्मुहर्त । नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक सादि-अपर्यवसित है । पर्याप्तक का अन्तर जघन्य और उत्कर्ष से भी अन्तर्मुहूर्त है । अपर्याप्तक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपशत-पृथक्त्व है । नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक हैं, उनसे अपर्याप्तक अनन्तगुण हैं, उनसे पर्याप्तक संख्येयगुण हैं । [३७८] अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं सूक्ष्म, बादर और नोसूक्ष्म-नोबादर । सूक्ष्म, सूक्ष्म के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्येयकाल अर्थात् पृथ्वीकाल तक रहता है । बादर, बादर के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्येयकाल-असंख्येय उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी रूपं है कालमार्गणा से । क्षेत्रमार्गणा से अंगुल का असंख्येयभाग है । [३७९] अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं-संज्ञी, असंज्ञी, नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी । संज्ञी, संज्ञी रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से सागरोपमशतपृथक्त्व से कुछ अधिक समय तक रहता है । असंज्ञी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल । नोसंज्ञी

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