Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 181
________________ १८० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [१५३] कृष्णपत्र, नीलपत्र, लोहितपत्र, हारिद्रपत्र, शुक्लपत्र, चित्रपक्ष, विचित्रपक्ष, अवभांजलिक, जलचारिक, गम्भीर, नीनिक, तन्तव, अक्षिरोट, अक्षिवेध, सारंग, नेवल, दोला, भ्रमर, भरिली, जरुला, तोट्ट, बिच्छू, पत्रवृश्चिक, छाणवृश्चिक, जलवृश्चिक, प्रियंगाल, कनक और गोमयकीट । इसी प्रकार के जितने भी अन्य (प्राणी) हैं, (उन्हें भी चतुरिन्द्रिय समझना। ये चतुरिन्द्रिय सम्मूर्छिम और नपुंसक हैं | वे दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक । इस प्रकार के चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों के नौ लाख जाति-कुलकोटि-योनिप्रमुख होते है । १५४] वह पंचेन्द्रिय-संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना कैसी है ? चार प्रकार की है। नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव-पंचेन्द्रिय संसास्समापन्न जीवप्रज्ञापना । [१५५] वे नैरयिक किस प्रकार के हैं ? सात प्रकार के रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक, शर्कराप्रभापृथ्वी-नैरयिक, वालुकाप्रभापृथ्वी-नैरयिक, पंकप्रभापृथ्वी-नैरयिक, धूमप्रभापृथ्वी-नैरयिक, तमःप्रभापृथ्वी-नैरयिक और तमस्तमःप्रभापृथ्वी-नैरयिक । वे संक्षेप में दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । [१५६-१५९] वे पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक किस प्रकार के हैं । तीन प्रकार के जलचर, स्थलचर और खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक । वे जलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक कैसे हैं ? पांच प्रकार के मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मगर और सुंसुमार । वे मत्स्य कितने प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के श्लक्ष्णमत्स्य, खवल्लमत्स्य, युगमत्स्य, विज्झिडियमत्स्य, हलिमत्स्य, मकरीमत्स्य, रोहितमत्स्य, हलीसागर, गागर, वट, वटकर, तिमि, तिमिंगल, नक्र, तन्दुलमत्स्य, कणिक्कामत्स्य, शालिशस्त्रिक मत्स्य, लंभनमत्स्य, पताका और पताकातिपताका । इसी प्रकार के जो भी अन्य प्राणी हैं, वे सब मत्स्यों के अन्तर्गत समझो । वे कच्छप किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के। अस्थिकच्छप और मांसकच्छप । वे ग्राह कितने प्रकार के हैं ? पांच प्रकार के, दिली, वेढल, मूर्धज, पुलक और सीमाकार | [१६०] वे मगर किस प्रकार के होते हैं ? दो प्रकार के हैं । शौण्डमकर और मृष्टमकर। वे सुंसुमार किस प्रकार के हैं ? एक ही आकार के हैं । अन्य जो इस प्रकार के हों उन्हे भी जान लेना । वे संक्षेप में दो प्रकार के हैं-सम्मूर्छिम और गर्भज । इनमें से तो सम्मूर्छिम हैं, वे सब नपुंसक होते हैं । इनमें से जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक । इस प्रकार (मत्स्य) इत्यादि पर्याप्तक और अपार्यप्तक जलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के साढ़े बारह लाख जाति-कुलकोटि-योनिप्रमुख होते हैं । [१६१] वे चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक किस प्रकार के हैं ? चार प्रकार के। एकखुरा, द्विखुरा, गण्डीपद और सनखपद । वे एकखुरा किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के । अश्व, अश्वतर, घोटक, गधा, गोरक्षर, कन्दलक, श्रीकन्दलक और आवर्त इसी प्रकार के अन्य प्राणी को भी एकखुर-स्थलचर० समझना । वे द्विखुर किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के । उष्ट्र, गाय, गवय, रोज, पशुक, महिष, मृग, सांभर, वराह, आज, एलक, रुरु, सरभ, जमर, कुरंग, गोकर्ण आदि । वे गण्डीपद किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के । हाथीं, हस्तिपूतनक, मत्कुणहस्ती, खड्गी और गेंडा, इसी प्रकार के अन्य प्राणी को गण्डीपद में जानलेना । वे सनखपद किस

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