Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 189
________________ १८८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भगवन् ! अपर्याप्त-बादर-वायुकायिकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! जहाँ बादरवायुकायिक-पर्याप्तकों के स्थान हैं, वहीं बादर-वायुकायिक-अपर्याप्तकों के स्थान कहे गए हैं। उपपात की अपेक्षा से (वे) सर्वलोक में हैं, समुद्घात की अपेक्षा से-वे) सर्वलोक में हैं, और स्वस्थान की अपेक्षा से (वे) लोक के असंख्यात भागों में हैं । भगवन् ! सूक्ष्मवायुकायिकों के पर्याप्तों और अपर्याप्तों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! सूक्ष्मवायुकायिक, जो पर्याप्त हैं और जो अपर्याप्त हैं, वे सब एक ही प्रकार के, अविशेष और नानात्व रहित हैं । वे सर्वलोक में पख्यिाप्त हैं। भगवन ! बादर वनस्पतिकायिक-पर्याप्तक जीवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से सात घनोदधि और सात घनोदधिवलयों में । अधोलोक में-पातालों में, भवनों में और भवनों के प्रस्तटों में । ऊर्ध्वलोक में कल्पों में, विमानों में, और विमानों के प्रस्तटों में । तिर्यग्लोक में कुंओं, तालाबों, नदियों, हृदों, वापियों, पुष्करिणियों, दीर्घिकाओं, गुंजालिकाओं, सरोवरों, सर-सर पंक्तियों, बिलों में, उझरों, निझरों, तलैयों, पोखरों, क्षेत्रों, द्वीपों, समुद्रों और सभी जलाशयों में तथा जल के स्थानों में हैं । उपपात और समुद्घात की अपेक्षा से सर्वलोक में और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । भगवन् ! बादर वनस्पतिकायिक-अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! बादर वनस्पतिकायिक-पर्याप्तकों के स्थान समान उनके अपर्याप्तकों के स्थान हैं । उपपात और समुद्घात की अपेक्षा से सर्वलोक में हैं; स्वस्वथान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । भगवन् ! सूक्ष्मवनस्पतिकायिकों के पर्याप्तकों एवं अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! सूक्ष्मवनस्पतिकायिक, जो पर्याप्त हैं और जो अपर्याप्त हैं, वे सब एक ही प्रकार के, विशेषतारहित और नानात्व रहित हैं वे सर्वलोक में व्याप्त हैं । [१९४] भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! ऊर्ध्वलोक में और अधोलोक में उसके एकदेशभाग में तथा तिर्यग्लोक में कुओं, तालाबों, नदियों, हृदों, वापियों में, पुष्करिणियों में, दीर्घिकाओं में, गुंजालिकाओं में, सरोवरों में, यावत् समस्त जलस्थानों में हैं । उपपात की अपेक्षा से लोक, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त त्रीन्द्रिय जीवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! ऊलोक और अधोलोक में उसके एकदेशभाग में तथा तिर्यग्लोक में कुंओं, तालाबों, यावत् समस्त जलस्थानों में, उपपात की अपेक्षा से लोक, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक चतुरिन्द्रिय जीवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! सभी स्थान तेइन्द्रियों के समान जानना । भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक पंचेन्द्रिय जीवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! सभी स्थान तेइन्द्रिय के समान जानना । [१९५] भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त नारकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से सात (नरक-) पृथ्वियों में रहते हैं । रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रमा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और तमस्तमःप्रभा में । इन में चौरासी लाख नरकावास होते हैं, वे नरक अन्दर से गोल और बाहर से चोकौर, तथा नीचे से छुरे के आकार से युक्त हैं । गाढ़ अंधकार से ग्रस्त हैं । ज्योतिष्कों की प्रभा से रहित हैं । उनके तलभाग मेद, चर्बी, मवाद के पटल,

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