Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 190
________________ प्रज्ञापना-२/-/१९५ १८९ रुधिर और मांस के कीचड़ से लिप्त, अशुचि, बीभत्स, अत्यन्त दुर्गन्धित, कापोत वर्ण की अग्नि जैसे रंग के, कठोरस्पर्श वाले, दुःसह एवं अशुभ नरक हैं । नरकों में अशुभ वेदनाएँ होती हैं । इन में नारकों के स्थान हैं । उपपात, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भांग में हैं । वे (नारक) काले, काली आभा वाले, गम्भीर रोमाञ्चवाले, भीम, उत्कट त्रासजनक तथा वर्ण से अतीव काले हैं । वे नित्य भीत, त्रस्त, त्रासित, उद्विग्न तथा अत्यन्त अशुभ, अपने नरक का भय प्रत्यक्ष अनुभव करते रहते हैं . [१९६] भगवन् रत्नप्रभापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नारकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १८०००० योजन मोटाईवाली रत्नप्रभापृथ्वी के मध्य में १७८००० योजन में, रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावास है । वे नरक अन्दर से गोल, बाहर से चौकोर यावत् अशुभ नरक हैं । नरकों में अशुभ वेदनाएँ हैं । इनमें रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के स्थान हैं। इत्यादि सामान्य नारकों के समान समझना । भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,३२,००० योजन मोटी शर्कराप्रभा पृथ्वी के मध्य में १,३०,००० योजन में, शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के पच्चीस लाख नारकावास है । यावत् सब वर्णन सामान्य नारको के समान जानना । भगवन् ! वालुकाप्रभापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहां हैं ? गौतम ! १,२८,००० योजन मोटी वालुकाप्रभापृथ्वी के बीच में १,२६,००० योजन प्रदेश में, वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के पन्द्रह लाख नारकावास है । यावत् समस्त वर्णन सामान्य नारको के समान समझना । भगवन् ! पंकप्रभापृथ्वी के पर्याप्त एवं अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,२०,००० योजन मोटी पंकप्रभापृथ्वी के बीच के १,१८,००० योजन प्रदेश में, पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के दस लाख नरकावास है । यावत् समस्त वर्णन पूर्ववत् जानना । भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,१८,००० योजन मोटी धूमप्रभापृथ्वी के बीच के १,१६,००० योजन प्रदेश में, धूमप्रभापृथ्वी के नारकों के तीन लाख नारकावास है । यावत् समस्त वर्णन पूर्ववत् । भगवन् ! तमःप्रभापृथ्वी के पर्याप्त और 'अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ कहे हैं ? गौतम ! १,१६,००० योजन मोटी तमःप्रभापृथ्वी के मध्य में १,१४,००० योजन में, वहाँ तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के पांच कम एक लाख नरकावास है । यावत् समस्त वर्णन पूर्ववत् । भगवन् ! तमस्तमापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,०८,००० मोटी तमस्तमापृथ्वी के ऊपर के साढ़े बावन तथा नीचे के भी साढ़े बावन हजार योजन को छोड़कर बीच के तीन हजार योजन में, तमस्तमप्रभा पृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नारकों के पांच दिशाओं में पांच अनुत्तर, अत्यन्त विस्तृत महान् महानिरय हैं । काल, महाकाल, रौख, महारौख और अप्रितष्ठान । यावत् समस्त वर्णन पूर्ववत् । [१९७] (नरकपृथ्वियों की क्रमशः मोटाई एक लाख से ऊपर की संख्या में)-अस्सी, बत्तीस, अट्ठाईस, बीस, अठारह, सोलह और आठ हजार ‘योजन' है ।। [१९८] (नारकावासों का भूमिभाग-) छठी नरक तक; एक लाख से ऊपर -अठहत्तर, तीस, छव्वीस, अठारह और छठी नरकपृथ्वी में-चौदह हजार योजन हैं । [१९९] सातवीं तमस्तमा नरकपृथ्वी में ऊपर और नीचे साढ़े बावन-साढ़े बावन हजार

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