Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 214
________________ प्रज्ञापना-३/-/२८८ २१३ क्षेत्र के अनुसार सबसे कम ज्योतिष्क देव ऊर्ध्वलोक में हैं, ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, त्रैलोक्य में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, अधोलोक में संख्यातगुणे हैं, (उनसे भी) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं । - ज्योतिष्कदेवी के सम्बन्ध में भी यहीं समझ लेना । क्षेत्र के अनुसार सबसे कम वैमानिक देव ऊर्ध्वलोकतिर्यक्लोक में हैं, त्रैलोक्य में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, अधोलोक में संख्यातगुणे हैं, तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, (उनसे भी) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं। वैमानिक देवी के सम्बन्ध में भी यहीं समझना । . २८९] क्षेत्र के अनुसार सबसे थोड़े एकेन्द्रिय जीव ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं (उनसे भी) अधोलोक में विशेषाधिक हैं । - एकेन्द्रिय अपर्याप्तक और पर्याप्तक के सम्बन्ध में भी इसी तरह समझ लेना । - [२९०] क्षेत्र की अपेक्षा से सबसे कम द्वीन्द्रिय जीव ऊर्ध्वलोक में हैं, (उनसे) ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) अधोलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) अधोलोक में संख्यातगुणे हैं, (और उनसे भी) तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं । द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक और पर्याप्तक के सम्बन्ध में भी यही समझना । त्रीइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय जीवो तथा उनके अपर्याप्तक-पर्याप्तक के सम्बन्ध में भी यहीं अल्प बहुत्व जानना । [२९१] क्षेत्र की अपेक्षा से सबसे अल्प पंचेन्द्रिय त्रैलोक्य में हैं, (उनसे) ऊर्ध्वलोकतिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, (उनसे) अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, (उनसे) ऊर्ध्वलोक में संख्यातगुणे हैं, (उनसे) अधोलोक में संख्यातगुणे हैं और उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं । - पंचेन्द्रिय के अपर्याप्तक और पर्याप्तक के सम्बन्ध मे यहीं समझ लेना। [२९२] क्षेत्र के अनुसार सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक जीव ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, (उनसे) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं, और (उनसे) अधोलोक में विशेषाधिक हैं । - ऐसा ही अपर्याप्तक और पर्याप्तक के विषय में जानना । अप्कायिक से वनस्पतिकायिक के सम्बन्ध में भी इसी तरह समझ लेना । २९३] क्षेत्र की अपेक्षा से सबसे थोड़े त्रसकायिक जीव त्रैलोक्य में हैं, ऊर्ध्वलोकतिर्यक्लोक में संख्यातगुणे हैं, उनसे संख्यातगुणे अधोलोक-तिर्यक्लोक हैं, ऊर्ध्वलोक में (उनसे) संख्यातगुणे हैं, अधोलोक में उनसे संख्यातगुणे हैं, और (उनसे भी) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं । इसी तरह त्रसकायिक अपर्याप्तक और पर्याप्तको के सम्बन्ध में समझना । [२९४] भगवन् ! इन आयुष्यकर्म के बन्धकों और अबन्धकों, पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों, सुप्त और जागृत जीवों, समुद्घात करने वालों और न करने वालों, सातावेदकों और असातावेदकों, इन्द्रियोपयुक्तों और नो-इन्द्रियोपयुक्तों, साकारोपयोग में उपयुक्तों और अनाकारोपयोग में उपयुक्त जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े आयुष्यकर्म के बन्धक जीव हैं, अपर्याप्तक संख्यातगुणे हैं, सुप्तजीव

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