Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

Previous | Next

Page 196
________________ प्रज्ञापना-२/-/२१८ १९५ हैं । जो महर्द्धिक हैं, (इत्यादि) । इन्हीं में दो पिशाचेन्द्र पिशाचराज-काल और महाकाल, निवास करते हैं, इत्यादि समस्त वर्णन कहना । भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त दाक्षिणात्य पिशाच देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के एक हजार योजन मोटे रत्नमय काण्ड के बीच में जो आठ सौ योजन हैं, उनमें दाक्षिणात्य पिशाच देवों के तिरछे असंख्येय भूमिगृह जैसे लाखों नगरावास है । इन में पर्याप्त और अपर्याप्त दाक्षिणात्य पिशाच देवों के स्थान हैं | इन्हीं में बहुत-से दाक्षिणात्य पिशाच देव निवास करते हैं, इत्यादि समग्र वर्णन करना । इन्हीं में पिशाचेन्द्र पिशाचराज काल निवास करते हैं, जो महर्द्धिक है, इत्यादि । वह तिरछे असंख्यात भूमिगृह जैसे लाखों नगरावासों का, चार हजार सामानिक देवों का, सपरिवार चार अग्रमहिषियों का, तीन परिषदों का, सात सेनाओं का, सात सेनाधिपति देवों का, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों का तथा और भी बहुतसे दक्षिण दिशा के वाणव्यन्तर देवों और देवियों का यावत् 'विचरण करता है' । भगवन् ! उत्तर दिशा के पर्याप्त और अपर्याप्त पिशाच देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! दक्षिण दिशा के पिशाच देवों के समान उत्तर दिशा के पिशाच देवों का वर्णन समझना । विशेष यह है कि (इनके नगरावास) मेरुपर्वत के उत्तर में हैं । इन्हीं में (उत्तर दिशा का) पिशाचेन्द्र पिशाचराजमहाकाल निवास करता है, इत्यादि । इस प्रकार पिशाचों और उनके इन्द्रों के समान भूत यावत् गन्धर्षों तक का वर्णन समझना । विशेष-इनके इन्द्रों में भेद है । यथा-भूतों के (दो इन्द्र)-सूरूप और प्रतिरूप, यक्षों के पूर्णभद्र और माणिभद्र, राक्षसों के भीम और महाभीम, किन्नरों के किनर और किम्पुरुष, किम्पुरुषों के सत्पुरुष और महापुरुष, महोरगों के अतिकाय और महाकाय तथा गन्धों के गीतरति और गीतयश; यावत् 'विचरण करता है' तक समझ लेना । [२१९] वाणव्यन्तर देवों के प्रत्येक के दो-दो इन्द्र क्रमशः इस प्रकार हैं काल और महाकाल, सुरूप और प्रतिरूप, पूर्णभद्र और माणिभद्र इन्द्र, भीम और महाभीम । तथा [२२०] किन्नर और किम्पुरुष, सत्पुरुष और महापुरुष, अतिकाय और महाकाय तथा गीतरति और गीतयश । [२२१] भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक अणपर्णिक देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के एक हजार योजन मोटे रत्नमय काण्ड के मध्य में आठसौ योजन में, अणपर्णिक देवों के तिरछे असंख्यात लाख नगरावास है । नगरावास वर्णन पूर्ववत् । इन में अणपर्णिक देवों के स्थान हैं । वहाँ बहुत-से अणपर्णिक देव निवास करते हैं, वे महर्द्धिक हैं, (इत्यादि) । इन्हीं में दोनों अणपणिकन्द्र अणपर्णिककुमारराज–सन्निहित और सामान निवास करते हैं, जो कि महर्द्धिक हैं, (इत्यादि) । इस प्रकार जैसे दक्षिण और उत्तर दिशा के (पिशाचेन्द्र) काल और महाकाल के समान सन्निहित और सामान आदि के विषय में कहना । [२२२] अणपर्णिक, पणपर्णिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाक्रन्दित, कुष्माण्ड और पतंगदेव । इनके (प्रत्येक के दो दो) इन्द्र ये हैं [२२३] सन्निहित और सामान, धाता और विधाता, ऋषि और ऋषिपाल, ईश्वर और महेश्वर, सुवत्स और विशाल । तथा

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241