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प्रज्ञापना-२/-/२०५
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निवास करते हैं । सुपर्णेन्द्र सुपर्णकुमारराज वेणुदेव निवास करता है; शेष वर्णन पूर्ववत् । भगवन् ! उत्तरदिशा के पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के १,७८,००० योजन में, आदि यावत् यहाँ उत्तरदिशा के सुपर्णकुमार देवों के चौंतीस लाख भवनावास है । भवन समग्र वर्णन पूर्ववत् यावत् यहाँ बहुत-से उत्तरदिशा के सुपर्णकुमार देव निवास करते हैं, यावत् विचरण करते हैं । इन्हीं (पूर्वोक्त स्थानों) में यहाँ सुपर्णकुमारेन्द्र सुपर्णकुमारराज वेणुदाली निवास करता है, जो महर्द्धिक है; इत्यादि पूर्ववत् ।
सुपर्णकुमारों के समान शेष भवनवासियों को भी और उनके चौदह इन्द्रों को कहना। विशेषता यह है कि उनके भवनों की संख्या, इन्द्रों के नामों, वर्णों तथा परिधानों में अन्तर है ।
[२०६] भवनावास-असुरकुमारों के ६४ लाख, नागकुमारों के ८४ लाख, सुपर्णकुमारों के ७२ लाख, वायुकुमारों के ९६ लाख । तथा
[२०७] द्वीपकुमारों से अग्निकुमारों तक इन छहों के युगलों के प्रत्येक ७६-७६ लाख भवनावास हैं।
[२०८] दक्षिणदिशा के असुरकुमारों आदि के भवनों की संख्या क्रमशः ३४ लाख, ४४ लाख, ३८ लाख, ५० लाख, ५ से १० तक प्रत्येक के ४०-४० लाख भवन हैं । . [२०९] उत्तरदिशा के असुरकुमारों आदि के भवनों की संख्या क्रमशः ३० लाख, ४० . लाख, ३४ लाख, ४६ लाख, ५ से १० तक प्रत्येक के ३६-३६ लाख भवन हैं ।
[२१०] सामानिकों और आत्मरक्षकों की संख्या-दक्षिण दिशा के असुरेन्द्र के ६४ हजार और उत्तरदिशा के असुरेन्द्र के ६० हजार हैं; शेष सब के छह-छह हजार सामानिकदेव हैं । आत्मरक्षकदेव उनसे चौगुने-चौगुने होते हैं ।
[२११] दाक्षिणात्य इन्द्रों के नाम-चमरेन्द्र, धरणेन्द्र वेणुदेवेन्द्र, हरिकान्त, अग्निसिंह, पूर्णेन्द्र, जलकान्त, अमित, वैलम्ब और घोष है ।
[२१२] उत्तरदिशा के इन्द्रों के नाम-बलीन्द्र, भूतानन्द, वेणुदालि, हरिस्सह, अग्निमाणव, वशिष्ठ, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन और महाघोष इन्द्र है । (ये दसों) उत्तरदिशा के इन्द्र....यावत् विचरण करते हैं ।
२१३] वर्णों का कथन-असुरकुमार काले, नाग और उदधिकुमारों शुक्ल और सुपर्ण, दिशा और स्तनितकुमार श्रेष्ठ स्वरिखा के समान गौर वर्ण के हैं ।
[२१४] विद्युत्कुमार, अग्निकुमार और द्वीपकुमार तपे हुए सोने के समान वर्ण के और वायुकुमार श्याम प्रियंगु के वर्ण के है ।
[२१५] इनके वस्त्रों के वर्ण-असुरकुमारों के वस्त्र लाल, नाग और उदधिकुमारों के नीले और सुपर्ण, दिसा तथा स्तनितकुमारों के अतिश्वेत होते हैं । तथा
(२१६] विद्युत्कुमारों, अग्निकुमारों और द्वीपकुमारों के वस्त्र नीले रंग के और वायुकुमारों के सन्ध्याकाल की लालिमा जैसे है ।
[२१७] भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त वाणव्यन्तर देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के एक हजार योजन मोटे रत्नमय काण्ड के ऊपर तथा नीचे भी एक सौ 713