Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

Previous | Next

Page 199
________________ १९८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवा. प्रतिरूप हैं । उन विमानावासों के ठीक मध्यदेशभाग में पांच अवतंसक कहे गए हैं । अंकावतंसक, स्फटिकावतंसक, रत्नावतंसक, जातरूपावतंसक और इनके मध्य में ईशानावतंसक। वे अवतंसक पूर्णरूप से रत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं, इन्हीं में पर्याप्तक और अपार्यप्तक ईशान देवों के स्थान हैं । शेष सब वर्णन पूर्ववत् । इस ईशानकल्प में देवेन्द्र देवराज ईशान निवास करता है, शूलपाणि, वृषभवाहन, उत्तरार्द्धलोकाधिपति, २८ लाख विमानावासों का अधिपति, रजरहित स्वच्छ वस्त्रों का धारक है; शेष वर्णन पूर्ववत् । वह वहाँ २८ लाख विमानावासों का, ८०,००० सामानिक देवों का, तेतीस त्रायस्त्रिंशक देवों का, चार लोकपालों का, आठ सपरिवार अग्रमहिषियों का, तीन परिषदों का, सात सेनाओं का, सात सेनाधिपति देवों का, ३,२०,००० आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत-से ईशानकल्पवासी देवों और देवियों का आधिपत्य, यावत् 'विचरण करता है । भगवन ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक सनत्कुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? गौतम ! सौधर्म-कल्प के ऊपर समान पक्ष और समान प्रतिदिशा में बहुत योजन, यावत् उपर दूर जाने पर सनत्कुमार कल्प है, इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् । इसी में सनत्कुमार देवों के बारह लाख विमान है । वे विमान पूर्णरूप से रत्नमय हैं, यावत् 'प्रतिरूप हैं उन विमानों के बीचोंबीच में पांच अवतंसक हैं । अशोकावतंसक, सप्तपर्णावतंसक, चंपकावतंसक, चूतावतंसक और इनके मध्य में सनत्कुमारावतंसक है । वर्णन पूर्ववत् । इन में पर्याप्तक और अपर्याप्तक सनत्कुमार देवों के स्थान हैं । उन में बहुत-से सनत्कुमार देव निवास करते हैं, जो महर्द्धिक हैं, (इत्यादि) विशेष यह है कि यहाँ अग्रमहिषियां नहीं हैं । यहीं देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार निवास करताहै, शेष वर्णन पूर्ववत् । वह बारह लाख विमानावासों का, ७२००० सामानिक देवों का, (इत्यादि) वर्णन पूर्ववत् ‘अग्रमहिषियों को छोड़कर' (करना) । विशेषता यह कि २,२८,००० आत्मरक्षक देवों का आधिपत्य करते हुए...यावत् 'विचरण करता है ।' भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक माहेन्द्र देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? गौतम ! ईशानकल्प के ऊपर समान पक्ष और समान विदिशा में बहुत योजन, यावत् ऊपर दूर जाने पर वहाँ माहेन्द्र कल्प है, इत्यादि पूर्ववत् । विशेष यह है कि इस कल्प में विमान आठ लाख हैं । इनके बीच में माहेन्द्रअवतंसक है । यहीं देवेन्द्र देवराज माहेन्द्र निवास करता है; शेष पूर्ववत् । विशेष यह है कि माहेन्द्र आठ लाख विमानावासों का, ७०००० सामानिक देवों का, २,८०,००० आत्मरक्षक देवों का यावत् 'विचरण करता है' । भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त ब्रह्मलोक देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? गौतम ! सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों के ऊपर समान पक्ष और समान विदिशा में बहुत योजन यावत् ऊपर दूर जाने पर, वहाँ ब्रह्मलोक कल्प है, जो पूर्व-पश्चिम में लम्बा और उत्तर-दक्षिण में विस्तीर्ण, परिपूर्ण चन्द्रमा के आकार का, ज्योतिमाला तथा दीप्तिराशि की प्रभावाला है । विशेष यह कि चार लाख विमानावास हैं । इन के मध्य में ब्रह्मलोक अवतंसक है; जहाँ कि ब्रह्मलोक देवों के स्थान हैं । शेष वर्णन पूर्ववत् । ब्रह्मलोकावतंसक में देवेन्द्र देवराज ब्रह्म निवास करता है; (इत्यादि पूर्ववत्) । विशेष यह कि चार लाख विमानावासों का, ६०,००० सामानिकों का, २,४०,००० आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत से ब्रह्मलोककल्प के देवों का आधिपत्य करता हुआ यावत् 'विचरण करता है' ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241