________________
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
हैं, वे सभी नपुंसक होते हैं । इनमें से जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के हैं । स्त्री, पुरुष और नपुंसक । उरः परिसर्पों के दस लाख जाति-कुलकोटि - योनि - प्रमुख होते है ।
भुजपरिसर्प किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के । नकुल, गोह, सरट, शल्य, सरंठ, सार, खार, गृहकोकिला, विषम्भरा, मूषक, मंगुसा, पयोलातिक, क्षीरविडालिका; चतुष्पद स्थलचर के समान इनको समझना । इसी प्रकार के अन्य जितने भी (भुजा से चलने वाले प्राणी हों, उन्हें भुजपरिसर्प समझना । वे भुजपरिसर्प संक्षेप में दो प्रकार के हैं । सम्मूर्च्छिम और गर्भज । जो सम्मूर्च्छिम हैं, वे सभी नपुंसक होते हैं । जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के हैं । स्त्री, पुरुष और नपुंसक । भुजपरिसर्पों के नौ लाख जाति-कुलकोटि- योनि प्रमुख होते है ।
१८२
[१६३] वे खेचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक किस-किस प्रकार के हैं । चार प्रकार के । चर्मपक्षी, लोमपक्षी, समुद्गकपक्षी और विततपक्षी । वे चर्मपक्षी किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के । वल्गुली, जलौका, अडिल्ल, भारण्डपक्षी, जीवंजीव, समुद्रवायस, कर्णत्रिक और पक्षिविडाली । अन्य जो भी इस प्रकार के पक्षी हों, उन्हें चर्मपक्षी समझना ) । रोमपक्षी अनेक प्रकार के हैं । ढंक, कंक, कुरल, वायस, चक्रवाक, हंस, कलहंस, राजहंस, पादहंस, आड, सेडी, बक, बकाका, पारिप्लव, क्रौंच, सारस, मेसर, मसूर, मयूर, शतवत्स, गहर, पौण्डरीक, काक, कामंजुक, वंजुलक, तित्तिर, वर्त्तक, लावक, कपोत, कपिंजल, पारावत, चिटक, चास, कुक्कुट, शुक, बर्ही, मदनशलाका, कोकिल, सेह और वरिल्लक आदि । समुद्गपक्षी एक ही आकार के हैं । वे ( मनुष्यक्षेत्र से) बाहर के द्वीप - समुद्रों में होते हैं । विततपक्षी एक ही आकार के होते हैं । वे (मनुष्यक्षेत्र से) बाहर के द्वीप - समुद्रों में होते हैं । ये खेचरपंचेन्द्रिय संक्षेप में दो प्रकार के हैं । सम्मूर्च्छिम और गर्भज । जो सम्मूर्च्छिम हैं, वे सभी नपुंसक हैं । जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के हैं । स्त्री, पुरुष और नपुंसक । खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च-योनिकों के बारह लाख जाति - कुलकोटि-योनिप्रमुख होते है ।
[१६४] सात, आठ, नौ, साढ़े बारह, दस, दस, नौ, तथा बारह (यों द्वीन्द्रिय से लेकर खेचर पंचेन्द्रिय तक की क्रमशः इतने लाख जातिकुलकोटि समझना ।
[१६५] यह खेचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की प्ररूपणा हुई ।
[१६६] मनुष्य किस प्रकार के होते हैं ? दो प्रकार के । सम्मूर्च्छिम और गर्भज । सम्मूर्च्छिम मनुष्य कैसे होते हैं ? भगवन् ! सम्मूर्च्छिम मनुष्य कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर, ४५ लाख योजन विस्तृत द्वीप - समुद्रों में, पन्द्रह कर्मभूमियों में, तीस अकर्मभूमियों में एवं छप्पन अन्तद्वीपों में गर्भज मनुष्यों के उच्चारों में, मूत्रों में, कफों में, सिंघाण में, वमनों में, पित्तों में, मवादों में, रक्तों में, शुक्रों में, सूखे हुए शुक्र के पुद्गलों को गीला करने में, मरे हुए जीवों के कलेवरों में, स्त्री-पुरुष के संयोगों में, गटरों में अथवा सभी अशुचि स्थानों में उत्पन्न होते हैं । इन की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र की होती है । ये असंज्ञी मिथ्यादृष्टि एवं अपर्याप्त होते हैं । ये अन्तर्मुहूर्त की आयु भोग कर मर जाते हैं ।
I
गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के हैं । कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अन्तरद्वीपक । अन्तरद्वीपक अट्ठाईस प्रकार के हैं । एकोरुक, आभासिक, वैषाणिक, नांगोलिक, हयकर्ण, गजकर्ण, गोकर्ण, शष्कुलिकर्ण, आदर्शमुख, मेण्ढमुख, अयोमुख, गोमुख, अश्वमुख, हस्तिमुख,