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प्रज्ञापना-१/-/१६६
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सिंहमुख, व्याघ्रमुख, अश्वकर्ण, सिंहकर्ण, अकर्ण, कर्णप्रावरण, उल्कामुख, मेघमुख, विद्युन्मुख, विद्युद्दन्त, घनदन्त, लष्टदन्त, गूढदन्त और शुद्धदन्त ।
अकर्मभूमक मनुष्य तीस प्रकार के हैं। पांच हैमवत, पांच हैरण्यवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु-क्षेत्रों में ।
कर्मभूमक मनुष्य पन्द्रह प्रकार के हैं । पांच भरत, पांच ऐवत और पांच महाविदेहक्षेत्रों में । वे संक्षेप में दो प्रकार के हैं आर्य और म्लेच्छ । म्लेच्छ मनुष्य अनेक प्रकार के हैं । शक, यवन, किरात, शबर, बर्बर, काय, मरुण्ड, उड्ड, भण्डक, निन्नक, पक्कणिक, कुलाक्ष, गोंड, सिंहल, पारस्य, आन्ध्र, उडम्ब, तमिल, चिल्लल, पुलिन्द, हारोस, डोंब, पोक्काण, गन्धाहारक, बहलिक, अज्जल, रोम, पास, प्रदुष, मलय, चंचूक, मूयली, कोंकणक, मेद, पल्हव, मालव, गणर, आभाषिक, कणवीर, चीना, ल्हासिक, खस, खासिक, नेडूर, मंढ, डोम्बिलक, लओस, बकुश, कैकय, अरबाक, हूण, रोमक, मरुक रुत और चिलात देशवासी इत्यादि ।
__ आर्य दो प्रकार के हैं । ऋद्विप्राप्त और ऋद्धिअप्राप्त । ऋद्धिप्राप्त आर्य छह प्रकार के हैं । अर्हन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, चारण और विद्याधर । ऋद्धि-अप्राप्त आर्य नौ प्रकार के हैं । क्षेत्रार्य, जात्यार्य, कुलार्य, कार्य, शिल्पार्य, भाषार्य, ज्ञानार्य, दर्शनार्य और चारित्रार्य।
क्षेत्रार्य साढ़े पच्चीस प्रकार के हैं । यथा
[१६७] मगध में राजगृह, अंग में चम्पा, बंग में ताम्रलिप्ती, कलिंग में काञ्चनपुर, काशी में वाराणसी ।
[१६८] कौशल में साकेत, कुरु में गजपुर, कुशार्त में सौरीपुर पंचाल में काम्पिल्य, जांगल में अहिच्छत्रा ।
[१६९] सौराष्ट्र में द्वारावती, विदेह में मिथिला, वत्स में कौशाम्बी, शाण्डिल्य में नन्दिपुर, मलय में भद्दिलपुर ।
[१७०] मत्स्य में वैराट, वरण में अच्छ, दशाण में मृत्तिकावती, चेदि में शुक्तिमती, सिन्धु-सौवीर में वीतभय ।
[१७१] शूरसेन में मथुरा, भंग में पावापुरी, पुरिवर्त में मासा, कुणाल में श्रावस्ती, लाढ में कोटिवर्ष ।
[१७२] केकयार्द्ध में श्वेताम्बिका, (ये सब २५ ।। देश) आर्य (क्षेत्र) हैं । इन में तीर्थंकरों, चक्रवर्तियों, बलदेवों और वासुदेवों का जन्म होता है ।
[१७३] यह हुआ क्षेत्रार्यों का वर्णन । जात्यार्य छह प्रकार के हैं । [१७४] अम्बष्ठ, कलिन्द, वैदेह, वेदग, हरित एवं चुंचुण; ये छह इभ्य जातियां हैं।
[१७५] यह हुआ जात्यार्यों का निरुपण । कुलार्य छह प्रकार के हैं । उग्र, भोग, राजन्य, इक्ष्वाकु, ज्ञात और कौरव्य । कार्य अनेक प्रकार के हैं । दोषिक, सौत्रिक, कासिक, सूत्रवैतालिक, भाण्डवैतालिक, कौलालिक और नरवाहनिक । इसी प्रकार के अन्य जितने भी हों, उन्हें कार्य समझना ।
शिल्पार्य अनेक प्रकार के हैं । तुन्नाक, दर्जी, तन्तुवाय, पट्टकार, दृतिकार, वरण, छर्विक, काठपादुकाकार, मुंजपादुकाकार, छ६कार, वाह्यकार, पुस्तकार, लेप्यकार, चित्रकार,