Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 161
________________ १६० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद नोअसंज्ञी सादि-अपर्यवसित है । संज्ञी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । असंज्ञी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व है । नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े संज्ञी हैं, उनसे नोसंज्ञीनोअसंज्ञी अनन्तगुण हैं और उनसे असंज्ञी अनन्तगुण हैं । [३८०] अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं-भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक और नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक । भवसिद्धिक जीव अनादि-सपर्यवसित हैं । अभवसिद्धिक अनादि-अपर्यवसित हैं और उभयप्रतिषेधरूप सिद्ध जीव सादि-अपर्यवसित हैं । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े अभवसिद्धिक हैं, उभयप्रतिषेधरूप सिद्ध उनसे अनन्तगुण हैं और भवसिद्धिक उनसे अनन्तगुण हैं । [३८१] अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं-त्रस, स्थावर और नोत्रस-नोस्थावर । त्रस, त्रस के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक दो हजार सागरोपम तक रहता है। स्थावर, स्थावर के रूप में वनस्पतिकाल पर्यन्त रहता है । नोत्रस-नोस्थावर सादि-अपर्यवसित हैं । त्रस का अन्तर वनस्पतिकाल है और स्थावर का अन्तर साधिक दो हजार सागरोपम है। नोत्रस-नोस्थावर का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े त्रस हैं, उनसे नोत्रस-नोस्थावर अनन्तगुण हैं और उनसे स्थावर अनन्तगुण हैं । प्रतिपत्ति-१०-सर्वजीव-३ । [३८२] जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव चार प्रकार के हैं वे चार प्रकार ये हैं मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी । मनोयोगी, मनोयोगी रूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त तक रहता है । वचनयोगी का भी अन्तर यही है । काययोगी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल तक रहता है । अयोगी सादि-अपर्यवसित है । मनोयोगी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । वचनयोगी का भी यही है । काययोगी का जघन्य अन्तर एक समय का है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अयोगी का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े मनोयोगी, उनसे वचनयोगी असंख्यातगुण, उनसे अयोगी अनन्तगुण और उनसे काययोगी अनन्तगुण हैं । [३८३] अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं-स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुंसकवेदक और अवेदक । स्त्रीवेदक स्त्रीवेदक रूप में विभिन्न अपेक्षा से (पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक) एक सौ दस, एक सौ, अठारह, चौदह पल्योपम तक तथा पल्योपमपृथक्त्व रह सकता है । जघन्य से एक समय तक रह सकता है । पुरुषवेदक, पुरुषवेदक के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व तक रह सकता है । नपुंसकवेदक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक रह सकता है । अवेदक दो प्रकार के हैं-सादि-अपर्यवसित और सादिसपर्यवसित । सादि-सपर्यवसित अवेदक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रह सकता है । स्त्रीवेदक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । पुरुषवेद का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । नपुंसकवेद का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व है । अवेदक का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े पुरुषवेदक, उनसे स्त्रीवेदक संख्येयगुण, उनसे अवेदक अनन्तगुण

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