Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 178
________________ प्रज्ञापना-१/-/१०९ १७७ [१०९] जिस पुष्प के टूटने पर उसके भंगप्रदेश में विषमछेद दिखाई दे, वह पुष्प प्रत्येकजीव है । इसी प्रकार के और भी पुष्प के प्रत्येक जीवी समझो । [११०] जिस फल के टूटने पर उसके भंगप्रदेश में विषमछेद दृष्टिगोचर हो, वह फल भी प्रत्येकजीव है । ऐसे और भी फल को प्रत्येकजीवी समझो । [१११] जिस बीज के टूटने पर उसके भंग में विषमछेद दिखाई दे, वह बीज प्रत्येकजीव है । ऐसे अन्य बीज को भी प्रत्येकजीवी समझो । [११२] जिस मूल के काष्ठ की अपेक्षा छल्ली अधिक मोटी हो, वह छाल अनन्तजीव है । इस प्रकार की अन्य छाले को अनन्तजीवी समझो । [११३] जिस कन्द के काष्ठ से छाल अधिक मोटी हो वह अनन्तजीव है । इसी प्रकार की अन्य छालें को अनन्तजीवी समझो । [११४] जिस स्कन्ध के काष्ठ से छाल अधिक मोटी हो, वह छाल अनन्तजीव है। इसी प्रकार की अन्य छाले को अनन्तजीवी समझो । [११५] जिस शाखा के काष्ठ की अपेक्षा छाल अधिक मोटी हो, वह छाल अनन्तजीव है । इस प्रकार की अन्य छालें को अनन्तजीवी समझना । [११६] जिस मूल के काष्ठ की अपेक्षा उसकी छाल अधिक पतली हो, वह छाल प्रत्येकजीव है । इस प्रकार की अन्य छालें को प्रत्येक जीवी समझो । [११७] जिस कन्द के काष्ठ से उसकी छाल अधिक पतली हो, वह छाल प्रत्येकजीव है । इस प्रकार की अन्य छालें को प्रत्येकजीवी समझना ।। [११८] जिस स्कन्ध के काष्ठ की अपेक्षा, उसकी छाल अधिक पतली हो, वह छाल प्रत्येकजीव है । इस प्रकार की अन्य छालें को प्रत्येकजीवी समझना । [११९] जिस शाखा के काष्ठ की अपेक्षा, उसकी छाल अधिक पतली हो, वह छाल प्रत्येकजीव वाली है । इस प्रकार की अन्य छालें को प्रत्येकजीवी समझना । १२०] जिस को तोड़ने पर (भंगस्थान) चक्राकार हो, तथा जिसकी गांठ चूर्ण से सघन हो, उसे पृथ्वी के समान भेद से अनन्तजीवों वाला जानो । [१२१] जिस की शिराएँ गूढ़ हों, जो दूध वाला हो अथवा जो दूध-रहित हो तथा जिस की सन्धि नष्ट हो, उसे अनन्तजीवों वाला जानो । [१२२] पुष्प जलज और स्थलज हों, वृन्तबद्ध हों या नालबद्ध, संख्यात जीवों वाले, असंख्यात जीवों वाले और कोई-कोई अनन्त जीवों वाले समझने चाहिए । [१२३] जो कोई नालिकाबद्ध पुष्प हों, वे संख्यात जीव वाले हैं । थूहर के फूल अनन्त जीवों वाले हैं । इसी प्रकार के जो अन्य फूल को भी अनन्त जीवी समझो । [१२४] पद्मकन्द, उत्पलिनीकन्द और अन्तरकन्द, इसी प्रकार झिल्ली, ये सब अनन्त जीवी हैं; किन्तु भिस और मृणाल में एक-एक जीव है । [१२५] पलाण्डुकन्द, लहसुनकन्द, कन्दली नामक कन्द और कुसुम्बक ये प्रत्येकजीवाश्रित हैं । अन्य जो भी इस प्रकार की वनस्पतियां हैं, (उन्हें प्रत्येकजीवी समझो।) [१२६] पद्य, उप्पल, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, अरविन्द, कोकनद, शतपत्र और सहस्रपत्र-कमलों के - 7/12

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