Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

Previous | Next

Page 176
________________ प्रज्ञापना-१/-/७६ १७५ शतपुष्पी तथा इन्दीवर । [७७] अन्य जो भी इस प्रकार की वनस्पतियां हैं, वे सब हरित के अन्तर्गत समझना। वे ओषधियां किस प्रकार की होती हैं ? अनेक प्रकार की हैं । शाली, व्रीहि, गोधूम, जौ, कलाय, मसूर, तिल, मूंग, माष, निष्पाव, कुलत्थ, अलिसन्द, सतीण, पलिमन्थ, अलसी, कुसुम्भ, कोदों, कंगू, राल, वरश्यामाक, कोदूस, शण, सरसों, मूलक बीज; ये और इसी प्रकार की अन्य जो भी (वनस्पतियां) हैं, (उन्हें भी ओषधियों में गिनना ।) वे जलरुह (वनस्पतियां) किस प्रकार की हैं ? अनेक प्रकार की हैं । उदक, अवक, पनक, शैवाल, कलम्बुका, हढ, कसेरुका, कच्छा, भाणी, उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र, कल्हार, कोकनद, अरविन्द, तामरस, कमल, भिस, भिसमृणाल, पुष्कर और पुष्करास्तिभज । इसी प्रकार की और भी वनस्पतियां हैं, उन्हें जलरुह के अन्तर्गत समझना ।। वे कुहण वनस्पतियां किस प्रकार की हैं ? अनेक प्रकार की हैं । आय, काय, कुहण, कुनक्क, द्रव्यहलिका, शफाय, सद्यात, सित्राक, वंशी, नहिता, कुरक । इसी प्रकार की जो अन्य वनस्पतियां है उन सबको कुहणा के अन्तर्गत समझना । ७८] वृक्षों की आकृतियां नाना प्रकार की होती हैं । इनके पत्ते और स्कन्ध एक जीव वाला होता हैं । ताल, सरल, नारिकेल वृक्षों के पत्ते और स्कन्ध एक-एक जीव वाले होते हैं । [७९] जैसे श्लेष द्रव्य से मिश्रित किये हुए समस्त सर्षपों की वट्टी एकरूप प्रतीत होती है, वैसे ही एकत्र हुए प्रत्येकशरीरी जीवों के शरीरसंघात रूप होते हैं । [८०] जैसे तिलपपड़ी बहुत-से तिलों के संहत होने पर होती है, वैसे ही प्रत्येकशरीरी जीवों के शरीरसंघात होते हैं । [८१] इस प्रकार उन प्रत्येकशरीर बादरवनस्पतिकायिक जीवों की प्रज्ञापना पूर्ण हुई। १८२] वे (पूर्वोक्त) साधारणशरीर बादरवनस्पतिकायिक जीव किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं । [८३] अवक, पनक, शैवाल, लोहिनी, स्निहूपुष्प, मिहस्तिहू, हस्तिभागा, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिउण्डी, मुसुण्ढी । तथा [८४] रुरु, कण्डुरिका, जीरु, क्षीरविराली; किट्टिका, हरिद्रा, श्रृंगबेर, आलू, मूला। [८५] कम्बू, कृष्णकटबू, मधुक, वलकी, मधुश्रृंगी, नीरूह, सर्पसुगन्धा, छिन्नरुह, बीजरुह । [८६] पाढा, मृगवालुंकी, मधुररसा, राजपत्री, पद्मा, माठरी, दन्ती, चण्डी, किट्टी । [८७] माषपर्णी, मुद्गपर्णी, जीवित, रसभेद, रेणुका, काकोली, क्षीरकाकोली, भंगी। [८८] कृमिराशि, भद्रमुस्ता, नांगलकी, पलुका, कृष्णप्रकुल, हड, हरतनुका, लोयाणी। [८९] कृष्णकन्द, वज्रकन्द, सूरणकन्द तथा खल्लूर, ये (पूर्वोक्त) अनन्तजीव वाले हैं। इनके अतिरिक्त और जितने भी इसी प्रकार के हैं, (वे सब अनन्त जीवात्मक हैं ।) ।। [९०] तृणमूल, कन्दमूल और वंशीमूल, ये और इसी प्रकार के दूसरे संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त जीव वाले है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241