Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 174
________________ प्रज्ञापना-१/-/४२ १७३ [४२] इसी प्रकार के अन्य जितने भी वृक्ष हों, उन सबको एकास्थिक ही समझना चाहिए । इन (एकास्थिक वृक्षों) के मूल असंखयात जीवों वाले होते हैं, तथा कन्द भी, स्कन्ध भी, त्वचा भी, शाखा भी और प्रवाल भी (असंख्यात जीवोंवाले होते हैं), किन्तु इनके पत्ते प्रत्येक जीववाले होते हैं । इनके फल एकास्थिक होते हैं । और वे बहुबीजक वृक्ष किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं । [४३] अस्थिक, तेन्दु, कपित्थ, अम्बाडग, मातुलिंग, बिल्व, आमलक, पनस, दाडिम, अश्वत्थ, उदुम्बर, वट । तथा [४४] न्यग्रोध, नन्दिवृक्ष, पिप्पली, शतरी, प्लक्षवृक्ष, कादुम्बरी, कस्तुम्भरी और देवदाली। [४५] तिलक, लवक, छत्रोपक, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्र, धव, चन्दन अर्जुन, नीप, कुरज और कदम्ब । तथा [४६] इस प्रकार के और भी जितने वृक्ष हैं, (जिनके फल में बहुत बीज हों; वे सब बहुबीजक वृक्ष समझने चाहिए ।) इन (बहुबीजक वृक्षों) के मूल जीवों वाले होते हैं । इनके कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा और प्रवाल भी (असंख्यात जीवात्मक होते हैं ।) इनके पत्ते प्रत्येक जीवात्मक होते हैं । पुष्प अनेक जीवरूप (होते हैं) और फल बहुत बीजोंवाले (हैं)। वे गुच्छ किस प्रकार के होते हैं ? गुच्छ अनेक प्रकार के हैं । [४७] बैंगन, शल्यकी, बोंडी, कच्छुरी, जासुमना, रूपी, आढकी, नीली, तुलसी तथा मातुलिंगी । एवं [४८] कस्तुम्भरी, पिप्पलिका, अलसी, बिल्वी, कायमादिका, चुचू, पटोला, कन्दली, बाउच्चा, बस्तुल तथा बादर । एवं [४१] पत्रपूर, शीतपूरक, जवसक, निर्गुण्डी, अर्क, तूवरी, अट्टकी, और तलपुटा। [५०] तथा सण, वाण, काश, मद्रक, आघ्रातक, श्याम, सिन्दुवार, करमर्द, आर्द्रडूसक, करीर, ऐरावण, महित्थ । तथा [५१] जातुलक, मोल, परिली, गजमारिणी, कुर्चकारिका, भंडी, जावकी, केतकी, गंज, पाटला, दासी और अंकोल्ल । [५२] अन्य जो भी इस प्रकार के हैं, (वे सब गुच्छ समझने चाहिए ।) वे (पूवोक्त] गुल्म किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं । वे इस प्रकार [५३] सेरितक, नवमालती, कोरण्ट्रक, बन्धुजीवक, मनोद्य, पीतिक, पान, कनेर, कुर्जक, सिन्दुवार । तथा [५४] जाती, मोगरा, जूही, मल्लिका, वासन्ती, वस्तुल, कच्छुल, शैवाल, ग्रन्थि, मृगदन्तिका । तथा [५५] चम्पक, जीती, नवनीतिका, कुन्द, तथा महाजाति; इस प्रकार अनेक आकारप्रकार के होते हैं । (उन सबकों) गुल्म समझना । [५६] यह हुई गुल्मों की प्ररूपणा ।। वे (पूर्वोक्त) लताएँ किस प्रकार की होती हैं ? अनेक प्रकार की हैं । यथा [५७] पद्मलता, नागलता, अशोकलता, चम्पकलता, चूतलता, वनलता, वासन्तीलता, अतिमुक्तकलता, कुन्दलता और श्यामलता ।

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